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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

वीर बालिका मेडलीन

दो-ढाई सौ वर्ष पहिले की बात है, कनाडा के मौन्ट्रील शहर से बीस मील दूर लारेन्स नदी के किनारे एक पुराने ढंग का किला था। लकड़ी के बड़े-बड़े लट्ठों को खूँटों की भांति एक-दूसरे से सटाकर गाड़कर दीवालें बनायी गयी थीं। इस किले में बीस सिपाही रहते थे। उनके नायक थे मि0 वर्चर।

इन्हीं मि0 वर्चर की पुत्री का नाम मेडलीन था। इस किले के सिपाही अपने परिवार के साथ रहते थे और अपने खाने-पीने के लिये किले से बाहर खेती भी करते थे; क्योंकि ये सिपाही फ्रान्स के थे और फ्रान्स से वहाँ गल्ला आदि आवश्यक वस्तुएँ बहुत कम पहुँच पाती थीं।

फसल के दिनों में सभी सिपाही अपने खेतों पर चले जाते थे। किले में पहरे के लिये दो-चार सिपाही और स्त्रियाँ रह जाती थीं। एक दिन फसल के समय किले में केवल दो सिपाहियों को छोड़कर मि0 वर्चर दूसरे सिपाहियों के साथ खेतपर चले गये और वहाँ सब लोग निश्चिन्त होकर फसल काटने लगे। इतने में ही हरोकी नाम की एक जंगली जाति के लुटेरों ने उन लोगों पर आक्रमण कर दिया। 'किलेमें चलो' की आज्ञा मि0 वर्चर ने अपने सिपाहियों को दी सही, किंतु तब तक लुटेरों ने उन लोगों को घेर लिया था। थोड़ी ही देर के युद्ध के बाद सब लोगों को हरोकी लुटेरों ने बाँध लिया।

मेडलीन भी उस समय किले से बाहर घूमने निकली थी। अपने पिता का 'किले में चलो' पुकारना उसने सुन लिया और लुटेरों का आक्रमण दूर से देखा। उसने यह भी देख लिया कि लुटेरों ने उसके पिता तथा उनके साथियों को बाँध लिया है। वह दौड़ी हुई किले में आयी। किले का फाटक उसने बंद करा दिया।

किले के दोनों सिपाहियों ने जब सुना कि लुटेरों ने उनके नायक तथा साथियों को बाँध लिया है तो वे निराश हो गये और कहने लगे- 'किले के बारूद के भंडार में आग लगा दो। किले को जला दो। हम सब लोग इस प्रकार मर जायें, नहीं तो लुटेरे बहुत कष्ट देकर हमें मारेंगे।’

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