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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

रत्नावती

जैसलमेर-नरेश महारावल रत्नसिंह अपने किले से बाहर राज्य के शत्रुओं का दमन करने गये थे। जैसलमेर किले की रक्षा उन्होंने अपनी पुत्री रत्नावती को सौंप दी थी। इसी समय दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन की सेना ने जैसलमेर को घेर लिया। इस सेना का सेनापति मलिक काफूर था। किले के चारों ओर बड़ी भारी मुसलमानी सेना पड़ाव डालकर पड़ गयी, लेकिन इससे रत्नावती घबरायी नहीं। वह वीर सैनिक का वेश पहिने, तलवार बाँधे, धनुष-बाण चढ़ाये घोड़े पर बैठी किले की बुर्जों पर और दूसरे सब आवश्यक स्थानों पर घूमती और सेना का संचालन करती थी। उसकी चतुरता और फुर्ती के कारण मुसलमान सेना ने जब-जब किलेपर आक्रमण करना चाहा, उसे अपने बहुत-से वीर खोकर पीछे हट जाना पड़ा।

जब अलाउद्दीन के सैनिकों ने देखा कि किले को तोड़ा नहीं जा सकता, तब एक दिन बहुत-से सैनिक किले की दीवारों पर चढ़ने लगे। रत्नावती ने पहले तो अपने रक्षक सैनिक हटा लिये और उन्हें चढ़ने दिया, पर जब वे दीवार पर ऊपर तक चढ़ आये तब उसने उनके ऊपर पत्थर बरसाने और गरम तेल डालने की आज्ञा दे दी, इससे शत्रु का वह पूरा दल नष्ट हो गया।

एक बार एक मुसलमान सैनिक छिपकर रात में किले पर चढ़ने लगा, लेकिन रत्नावती इतनी सावधान रहती थी कि उसने उस सैनिक को देख लिया। उस मुसलमान ने पहले तो यह कहकर धोखा देना चाहा कि 'मैं तुम्हारे पिताका संदेश लाया हूँ।’ किंतु राजकुमारी रत्नावती को धोखा देना सरल नहीं था। उसने उस शत्रु के सैनिक को बाण से बींध दिया।

सेनापति मलिक काफूर ने देखा कि वीरता से जैसलमेर का किला जीतना कठिन है। उसने बूढ़े द्वारपाल को सोने की ईंटें दीं कि वह रात को किले का फाटक खोल दे। लेकिन सच्चे राजपूत लोभ में आकर विश्वासघात नहीं करते। द्वारपाल ने रत्नावती को यह बात बतला दी। रत्नावती ने भी देखा कि शत्रु को पकड़ने का अच्छा अवसर है। उसने द्वारपाल को रात में किले का दरवाजा खोल देने को कह दिया।

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