लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ

वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

आधीरात को सौ सैनिकों के साथ मलिक काफूर किले के फाटक पर आया। बूढ़े द्वारपाल ने फाटक खोल दिया। वे लोग भीतर आ गये तो फाटक बंद करके वह उन्हें रास्ता दिखाता आगे ले चला। थोड़ी दूर जाकर बूढ़ा किसी गुप्त रास्ते से चला गया। मलिक काफूर और उसके साथी हैरान रह गये। किले की बुर्ज पर खड़ी होकर राजकुमारी रत्नावती हँस रही थी। वे लोग अब समझ गये थे कि यहाँ आकर वे अब वापस भी लौट नहीं सकते। उन्हें किले की कैद में बंद होना पड़ा।

सेनापति के पकड़े जाने पर भी मुसलमान सेना ने किले को घेरे रखा। किले के भीतर जो अन्न था वह समाप्त होने लगा। राजपूत सैनिक उपवास करने लगे। रत्नावती भूख से दुबली और पीली पड़ गयी। लेकिन ऐसे संकट में भी उसने राजा के न्याय-धर्म को नहीं छोड़ा। अपने यहों जेल में पड़े शत्रु को पीड़ा नहीं देनी चाहिये, यह अच्छे राजा का धर्म है। रत्नावती अपने सैनिकों को रोज एक मुट्ठी अन्न देती थी; किंतु मलिक काफूर और उसके साथियों को दो मुट्ठी अन्न रोज दिया जाता था।

अलाउद्दीन को जब पता लगा कि जैसलमेर के किले में उसका सेनापति कैद है और किला जीता जाय इसकी आशा नहीं है, तो उसने महारावल रत्नसिंहजी के पास सन्धि का प्रस्ताव भेज दिया। रत्नावती ने देखा कि एक दिन किले के चारों ओर की मुसलमान सेनाएँ अपना तम्बू-डेरा उखाड़ रही हैं और उसके पिता अपने सैनिकों के साथ चले आ रहे हैं।

मलिक काफूर जब किले की जेल से छोड़ा गया तो उसने कहा- 'राजकुमारी साधारण लड़की नहीं हैं। वे वीर तो हैं ही, देवी हैं। उन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है। वे तो पूजा करने योग्य हैं।'

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book