ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
वीरमती
देवगिरि नाम का एक छोटा-सा राज्य था। चौदहवीं शताब्दी में वहाँ के राजा रामदेव पर अलाउद्दीन ने चढ़ाई की। उसने राजा रामदेव के पास अधीनता स्वीकार करने के लिये संदेश भेजा, किंतु सच्चे राजपूत पराधीन होने के बदले युद्ध में हँसते-हँसते मर जाना अधिक उत्तम मानते हैं। राजा रामदेव ने अलाउद्दीन को बहुत कड़ा उत्तर दिया। क्रोध में भरा अलाउद्दीन सेना के साथ देवगिरि पर चढ़ आया। लेकिन देवगिरि के राजपूत सैनिकों की शक्ति के सामने उसकी बड़ी भारी सेना टिक नहीं सकी। अलाउद्दीन के बहुत-से सैनिक मारे गये। हारकर वह पीछे लौट पड़ा। देवगिरि में विजय का उत्सव मनाया जाने लगा। राजा रामदेव की सेना का एक मराठा सरदार किसी पिछले युद्ध में मारा गया था। उस सरदार की एकमात्र कन्या वीरमती को राजा ने अपनी पुत्री के समान पाला-पोसा था और जब वह चौदह-पंद्रह वर्ष की हुई तो अपनी सेना के कृष्णराव नाम के एक मराठा युवक से उसकी सगाई कर दी गयी। यह कृष्णराव बड़ा लोभी था। जब अलाउद्दीन हारकर लौट रहा था, तब कृष्णराव ने उसे देवगिरि किले का भेद इस लोभ से बता दिया कि विजयी होने पर अलाउद्दीन उसे देवगिरि का राजा बना देगा। देवगिरि के किले का भेद और वहाँ की सेना की शक्ति का पता पाकर अलाउद्दीन फिर सेना के साथ लौट पड़ा।
देवगिरि राज्य में विजय का उत्सव मनाया जा रहा था कि अलाउद्दीन के लौटने का समाचार मिला। राजा रामदेव ने कहा- 'अवश्य किसी ने हम लोगों के साथ विश्वासघात किया है। बिना कोई विशेष सूचना मिले हारा हुआ शत्रु फिर लौट नहीं सकता था। लेकिन चिन्ता की कोई बात नहीं। हम निश्चय ही शत्रु को फिर हरा देंगे।’
'हम अवश्य विजयी होंगे।' सभी राजपूत सरदारों ने तलवारें खींचते हुए कहा। लेकिन कृष्णराव चुप रह गया। सब लोग उसकी ओर देखने लगे और उसके चुप रहने का कारण पूछने लगे।
'यह देशद्रोही है?' वीरमती ने इतने में ही सिहिंनी के समान गरजकर कृष्णराव की छाती में तलवार घुसेड़ दी। कृष्णराव ने वीरमती से पहले कुछ ऐसी बात कही थी, जिससे वीरमती को उस पर संदेह हो गया था।
मरते-मरते कृष्णराव बोला- 'मैं सचमुच देशद्रोही हूँ, लेकिन वीरमती! तुम्हारा....।
वीरमती बीच में ही बोली- 'मैं जानती हूँ कि मेरा तुमसे विवाह होनेवाला था। मन से मैंने तुम्हें पति मान लिया था। हिंदू कन्या एक को पति बनाकर फिर दूसरे पुरुष की बात भी नहीं सोच सकती। मैंने देशद्रोही को मारकर अपने देश के प्रति मेरा जो कर्तव्य था उसे पूरा कर दिया है। अब मैं अपने सती धर्म का पालन करूँगी।'
इतना कहकर उसने अपनी छाती में वही तलवार मार ली और कृष्णराव के पास ही वह भी गिर पड़ी।
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