ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
4 पाठकों को प्रिय 178 पाठक हैं |
वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
राजकुमार कुवलयाश्व
परम पराक्रमी राजा शत्रुजित के पास एक दिन महर्षि गालव आये। महर्षि अपने साथ एक दिव्य अश्व भी ले आये थे। राजा ने महर्षि का विधिवत् पूजन किया। महर्षि ने बताया- 'एक दुष्ट राक्षस अपनी माया से सिंह, व्याघ्र, हाथी आदि वन-पशुओं का रूप धारण करके आश्रम में बार-बार आता है और आश्रम को नष्ट-भ्रष्ट कर जाता है। यद्यपि उसे क्रोध करके भस्म किया जा सकता है, पर ऐसा करने से तो तपस्या का नाश ही हो जायगा। हम लोग बड़े कष्ट से जो तप करते हैं, उसके पुण्य को नाश नहीं करना चाहते। हमारे क्लेश को देखकर इस 'कुवलय' नामक घोड़े को सूर्यदेव ने हमारे पास भेजा है। यह बिना थके पूरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर सकता है और आकाश, पाताल एवं जल में सर्वत्र इसकी गति है। देवताओं ने यह भी कहा है कि इस अश्व पर बैठकर आपके पुत्र ऋतध्वज उस असुर का वध करेंगे। अतएव आप अपने राजकुमार को हमारे साथ भेज दें। इस अश्व को पाकर वे कुवलयाश्व नाम से संसार में प्रसिद्ध होंगे।
धर्मात्मा राजा ने मुनि की आज्ञा मानकर राजकुमार को मुनि के साथ जाने की आज्ञा दी। राजकुमार मुनि के साथ जाकर उनके आश्रम में निवास करने लगे। एक दिन जब मुनिगण संध्योपासना में लगे हुए थे, तब शूकर का रूप धारण करके वह नीच दानव मुनियों को सताने वहाँ आ पहुँचा। उसे देखते ही वहाँ रहनेवाले मुनियों के शिष्य हल्ला करने लगे। राजकुमार ऋतध्वज शीघ्र ही घोड़े पर सवार होकर उसके पीछे दौड़े। धनुष को खींचकर एक अर्धचन्द्राकार बाण से उन्होंने असुर को बींध दिया। बाण से घायल होकर असुर प्राण बचाने के लिये भागा। राजकुमार भी उसके पीछे घोड़े पर लगे रहे। वनों, पर्वतों, झाड़ियों में जहाँ वह गया, राजकुमार के घोड़े ने उसका पीछा किया। अन्त में बड़े वेग से दौड़ता हुआ वह राक्षस पृथ्वी के एक गढ्ढे में कूद पड़ा। राजकुमार ने भी उस गढ्ढे में घोड़ा फँदा दिया। वह पाताल-लोक में पहुँचने का मार्ग था। उस अन्धकारपूर्ण मार्ग से राजकुमार पाताल पहुँच गये। स्वर्ग के समान सुन्दर पाताल में पहुँचकर उन्होंने घोड़े को एक स्थान पर बाँध दिया और वे एक भवन में गये। यहाँ उन्हें विश्वावसु नामक गन्धर्वराज की कन्या मदालसा मिली। दानव ब्रजकेतु के दुष्ट पुत्र पातालकेतु ने उसे स्वर्ग से हरण किया था और यहाँ लाकर रखे हुए था। वह असुर इससे विवाह करना चाहता था। जब मदालसा को पता लगा कि उस असुर पातालकेतु को राजकुमार ने अपने बाण से छेद डाला है तब उसने ऋतध्वज को ही अपना पति वरण कर लिया।
|