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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


राजकुमार ऋतध्वज ने जब मदालसा से विवाह कर लिया तब इस बात का समाचार पाकर पातालकेतु अपने अनुयायी दानवों के साथ क्रोध में भरा वहाँ आया। असुरों ने राजकुमार पर अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा प्रारम्भ कर दी, लेकिन हँसते हुए राजकुमार ने उसके सब अस्त्र-शस्त्र अपने बाणों से काट डाले। त्वाष्ट्र नाम के दिव्यास्त्र का प्रयोग करके उन्होंने सभी दानवों को एक क्षण में नष्ट कर दिया। जैसे महर्षि कपिल की क्रोधाग्नि में सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गये थे, वैसे ही उस दिव्यास्त्र की ज्वाला में दानव भस्म हो गये।
पत्नी के साथ राजकुमार उस अश्व पर चढ़कर पाताल से ऊपर आ गये। अपने विजयी पुत्र को आया देखकर उनके पिता को बड़ा हर्ष हुआ। समय आने पर राजकुमार ऋतध्वज कुवलयाश्व नरेश हुए। उनकी पत्नी मदालसा परम तत्त्व को जानने वाली थीं। उन्होंने ही अपने पुत्रों को गोद में लोरी देते-देते ही ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था।

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