ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
दरबार में सनसनी फैल गयी। नवाब बालक की ओर घूरकर देखने लगा; किंतु शिवाजी ने नेत्र नहीं झुकाये। शाहजी ने सहमते हुए प्रार्थना की- 'शाहंशाह! क्षमा करें। यह अभी बहुत नादान है।' पुत्र को उन्होंने घर जाने की आज्ञा दे दी। बालक ने पीठ फेरी और निर्भीकतापूर्वक दरबार से चला आया। घर लौटकर शाहजी ने जब पुत्र को उसकी धृष्टता के लिये डाँटा तब पुत्र ने उत्तर दिया- 'पिताजी! आप मुझे वहाँ क्यों ले गये थे! आप तो जानते ही हैं कि मेरा मस्तक तुलजा भवानी और आपको छोड़कर और किसी के सामने झुक नहीं सकता!' शाहजी चुप हो रहे।
इस घटना के चार वर्ष पीछे की एक घटना है। उस समय शिवाजी की अवस्था बारह वर्ष की थी। एक दिन बालक शिवाजी बीजापुर के मुख्य मार्ग पर घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि एक कसाई एक गाय को रस्सी से बाँधे लिये जा रहा है। गाय आगे जाना नहीं चाहती, डकराती है और इधर-उधर कातर नेत्रों से देखती है। कसाई उसे डंडे से बार-बार पीट रहा है। इधर-उधर दूकानों पर जो हिंदू हैं, वे मस्तक झुकाये यह सब देख रहे हैं। उनमें इतना साहस नहीं कि कुछ कह सकें। मुसलमानी राज्य में रहकर वे कुछ बोलें तो पता नहीं क्या हो। लेकिन लोगों की दृष्टि आश्वर्य से खुली-की-खुली रह गयी। बालक शिवा की तलवार म्यान से निकलकर चमकी, वे कूदकर कसाई के पास पहुँचे और गाय की रस्सी उन्होंने काट दी। गाय भाग गयी एक ओर। कसाई कुछ बोले-इससे पहले तो उसका सिर धड़ से कटकर भूमि पर लुढ़कने लगा था।
समाचार दरबार में पहुँचा। नवाब ने क्रोध से लाल होकर कहा- 'तुम्हारा पुत्र बड़ा उपद्रवी जान पड़ता है। शाहजी! तुम उसे बीजापुर से बाहर कहीं भेज दो।’
शाहजी ने आज्ञा स्वीकार कर ली। शिवाजी अपनी माता के पास भेज दिये गये, लेकिन अन्त में एक दिन वह भी आया कि बीजापुर-नवाब ने स्वतन्त्र हिंदू सम्राट के नाते शिवाजी को अपने राज्य में निमन्त्रित किया और जब शिवाजी हाथी पर सवार होकर बीजापुर के मार्गों से होते दरबार में पहुँचे तब नवाब ने आगे आकर उनका स्वागत किया और उनके सामने मस्तक झुकाया।
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