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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक छत्रसाल


पन्ना नरेश महाराज चम्पतराव बड़े ही धर्मनिष्ठ एवं स्वाभिमानी थे। इन्हीं के यहाँ ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया वि0 सं0 1706 को बालक छत्रसाल का मोर पहाड़ी के जंगल में जन्म हुआ। मुगल सम्राट शाहजहाँ की सेना चारों ओर से घेरा डालने के प्रयत्न में थी। छिपे रहना आवश्यक समझकर पुत्र के जन्म पर भी महाराज ने कोई उत्सव नहीं मनाया था। एक बार तो शत्रु इतने निकट आ गये कि लोगों को प्राण बचाने के लिये इधर-उधर छिपने के लिये भागना पड़ा। इस भाग-दौड़ में शिशु छत्रसाल अकेले ही मैदान में छूट गये; किंतु-

जाको राखै साइयाँ मार सकै नहिं कोय।
बाल न बाँका करि सकै जो जग बैरी होय।।

बालक छत्रसाल पर शत्रुओं की दृष्टि नहीं पड़ी। भगवान ने शिशु की रक्षा कर ली। चार वर्ष की अवस्था तक इन्हें ननिहाल में रहना पड़ा और फिर केवल सात वर्ष की अवस्था तक पिता के साथ रह सके। पाँच वर्ष की अवस्था में श्रीराम जी के मन्दिर में इन्होंने भगवान् राम-लक्ष्मण की मूर्तियों को अपने-जैसा बालक समझकर उनके साथ खेलना चाहा और कहते हैं सचमुच भगवान् इनके साथ खेले। पिता की मृत्यु के पश्चात् तेरह वर्ष की अवस्था तक छत्रसाल को ननिहाल में रहना पड़ा। इसके बाद वे पन्ना चले आये और चाचा सुजानराव ने बड़ी सावधानी से उन्हें सैनिक शिक्षा दी। अपने पिता का शौर्य छत्रसाल को पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुआ था। अपने जीवन में उन्होंने पिता के संकल्प को पूर्ण किया। पन्ना-राज्य छत्रसाल को पाकर धन्य हो गया।

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