ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर निर्भीक बालक शिवाजी
आगे चलकर जिसे हिंदू-धर्म का संरक्षक छत्रपति होना था, उसके शैशव में ही उनकी शिक्षा प्रारम्भ हो गयी थी। कठिनाइयां जीवन का निर्माण करती हैं और शिवाजी का बाल्यकाल बहुत बड़ी कठिनाइयों में बीता। शिवनेर के किले में सर 1630 ई0 में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता शाहजी बीजापुर दरबार में नौकर थे। बीजापुर के नवाब की ओर से जब कि शाहजी अहमदनगर की लडाई में फँसे थे, मालदार खान ने दिल्ली के बादशाह को प्रसन्न करने के लिये बालक शिवाजी तथा उनकी माता जीजाबाई को सिंहगढ़ के किले में बंदी करने का प्रयत्न किया, लेकिन उसका यह दुष्ट प्रयत्न सफल नहीं हो सका। शिवाजी के बचपन के तीन वर्ष अपने जन्म-स्थान शिवनेर के किले में ही बीते। इसके बाद जीजाबाई को शत्रुओं के भय से अपने बालक के साथ एक किले से दूसरे किले में बराबर भागते रहना पड़ा; किंतु इस कठिन परिस्थिति में भी उन वीर माता ने अपने पुत्र की सैनिक शिक्षा में त्रुटि नहीं आने दी।
माता जीजाबाई शिवाजी को रामायण, महाभारत तथा पुराणों की वीर-गाथाएँ सुनाया करती थीं। नारो, त्रीमल, हनुमन्त तथा गोमाजी नामक शिवाजी के शिक्षक थे और शिवाजी के संरक्षक थे प्रचण्ड वीर दादाजी कोडदेव। इस शिक्षा का परिणाम यह हुआ कि बालक शिवाजी बहुत छोटी अवस्था में ही निर्भीक एवं अदम्य हो गये। जन्मजात शूर मावली बालकों की टोली बनाकर वे उनका नेतृत्व करते थे और युद्ध के खेल खेला करते थे। उन्होंने बचपन में ही विधर्मियों से हिंदू-धर्म, देवमन्दिर तथा गौओं की रक्षा करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। शाहजी चाहते थे कि उनका पुत्र भी बीजापुर दरबार का कृपापात्र बने। शिवाजी जब आठ वर्ष के थे तभी उनके पिता एक दिन उन्हें शाही दरबार में ले गये। पिता ने सोचा था कि दरबार की साज-सजा, रोब-दाब, हाथी-घोड़े आदि देखकर बालक रोब में आ जायगा और दरबार की ओर आकर्षित होगा; किंतु शिवाजी तो बिना किसी ओर देखे, बिना किसी ओर ध्यान दिये पिता के साथ ऐसे चलते गये, जैसे किसी साधारण मार्ग पर जा रहे हों। नवाब के सामने पहुँचकर पिता ने शिवाजी की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा- 'बेटा! बादशाह को सलाम करो।'
बालक ने मुड़कर पिता की ओर देखा और बोला- 'बादशाह मेरे राजा नहीं हैं। मैं इनके आगे सिर नहीं झुका सकता।'
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