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वीर बालक
वीर बालक
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9731
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आईएसबीएन :9781613012840 |
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178 पाठक हैं
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
वीर बालक चण्ड
चित्तौड़ के राजसिंहासन पर उस समय राणा लाखा विराजमान थे। अपने पराक्रम से युद्ध में दिल्ली के बादशाह लोदी को उन्होंने पराजित किया था। उनकी कीर्ति चारों ओर फैल रही थी। राणा के पुत्रों में चण्ड सबसे बड़े थे और गुणों में भी ये श्रेष्ठ थे। जोधपुर के राठौर नरेश रणमल्लजी ने राजकुमार चण्ड के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिये चित्तौड़ नारियल भेजा। जिस समय जोधपुर से नारियल लेकर ब्राह्मण राजसभा में पहुँचा, राजकुमार चण्ड वहाँ नहीं थे। ब्राह्मण ने जब कहा कि राजकुमार के लिये मैं नारियल ले आया हूँ, तब परिहास में राणा लाखा ने कहा- 'मैंने तो समझा था कि आप इस बूढ़े के लिये नारियल लाये हैं और मेरे साथ खेल करना चाहते हैं।’ राणा की बात सुनकर सब लोग हँसने लगे।
राजकुमार चण्ड उसी समय राजसभा में आ रहे थे। उन्होंने राणा के शब्द सुन लिये थे। बड़ी नम्रता से उन्होंने कहा- 'परिहास के लिये ही सही, जिस कन्या का नारियल मेरे पिता ने अपने लिये आया कह दिया, वह तो मेरी माता हो चुकी। मैं उसके साथ विवाह नहीं कर सकता।’
बात बड़ी विचित्र हो गयी। नारियल को लौटा देना तो जोधपुर नरेश तथा उनकी निर्दोष कन्या का अपमान करना था और राजकुमार चण्ड किसी प्रकार यह विवाह करने को तैयार नहीं होते थे। राणा ने बहुत समझाया, परंतु चण्ड टस-से-मस नहीं हुए। जिस पुत्र ने कभी पिता की आज्ञा नहीं टाली थी, उसे इस प्रकार हठ करते देख राजा को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा- 'यह नारियल लौटाया नहीं जा सकता। रणमल्ल का सम्मान करने के लिये इसे मैं स्वयं स्वीकार कर रहा हूँ किंतु स्मरण रखो कि यदि इस सम्बन्ध से कोई पुत्र हुआ तो चित्तौड़ के सिंहासन पर वही बैठेगा।'
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