ई-पुस्तकें >> वीर बालक वीर बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ
कुमार चण्ड को पिता की इस बात से तनिक भी दुःख नहीं हुआ। उन्होंने भीष्मपितामह की प्रतिज्ञा के समान प्रतिज्ञा करते हुए कहा- 'पिताजी! मैं आपके चरणों को छूकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मेरी नयी माता से जो पुत्र होगा, वही सिंहासनपर बैठेगा और मैं जीवनपर्यन्त उसकी भलाई में लगा रहूँगा।’ राजकुमार की प्रतिज्ञा सुनकर सब लोग उनकी प्रशंसा करने लगे।
बारह वर्ष की राजकुमारी का पाणिग्रहण पचास वर्ष के राणा लाखा ने किया। इस नवीन रानी से उनके एक पुत्र हुआ, जिनका नाम 'मुकुल' रखा गया। जब मुकुल पाँच वर्षके थे, तभी गयातीर्थ पर मुसलमानों ने आक्रमण किया। तीर्थ की रक्षा के लिये राणा ने सेना सजायी। इतनी बड़ी पैदल यात्रा तथा युद्धसे जीवित लौटने की आशा करना ही व्यर्थ था। राजकुमार चण्ड से राणा ने कहा- 'बेटा! मैं तो धर्म-रक्षा के लिये जा रहा हूँ। तेरे इस छोटे भाई 'मुकुल' की आजीविका का क्या प्रबन्ध होगा?' चण्ड ने कहा- 'चित्तौड़ का राजसिंहासन इन्हीं का है।' राणा नहीं चाहते थे कि पाँच वर्ष का बालक सिंहासन पर बैठाया जाय।
उन्होंने चण्ड को अनेक प्रकार से समझाना चाहा, परंतु चण्ड अपनी प्रतिज्ञा पर स्थिर रहे। राणा के सामने ही उन्होंने मुकुल का राज्याभिषेक किया और सबसे पहले स्वयं उनका सम्मान किया।
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