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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


कर्ण आदि छ: महारथियों ने एक साथ अन्यायपूर्वक अभिमन्यु पर आक्रमण कर दिया। उनमें से एक-एक ने उनके रथ के एक-एक घोड़े मार दिये। एक ने सारथि को मार दिया और कर्ण ने उनका धनुष काट दिया। इतने पर भी अभिमन्यु रथपर से कूदकर उन शत्रुओं पर प्रहार करने लगे और उनकी मार से एक बार फिर चारों ओर भगदड़ मच गयी। क्रूर शत्रुओं ने अन्याय करते हुए उनको घेर रखा था। सब-के-सब उनपर शस्त्र-वर्षा कर रहे थे। उनका कवच और शिरस्त्राण कटकर गिर गया था। उनका शरीर बाणों के लगने से घायल हो गया था और उससे रक्त की धाराएँ गिर रही थीं। जब अभिमन्यु के पास के सब अस्त्र-शस्त्र कट गये, तब उन्होंने रथ का चक्का उठाकर ही मारना प्रारम्भ किया। इस अवस्था में भी कोई उन्हें सन्मुख आकर हरा नहीं सका। शत्रुओं ने पीछे से उनके शिरस्त्राणरहित सिरपर गदा मारी। उस गदा के लगने से अभिमन्यु सदा के लिये रणभूमि में गिर पड़े। इस प्रकार संग्राम में शूरतापूर्वक उन्होंने वीरगति प्राप्त की। इसीसे भगवान् श्रीकृष्ण ने बहिन सुभद्रा को धैर्य बँधाते हुए अभिमन्यु की-जैसी मृत्युको अपने सहित सबके लिये वाच्छनीय बतलाया था।

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