लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> वीर बालक

वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731
आईएसबीएन :9781613012840

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

178 पाठक हैं

वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


भीमसेन अर्जुन की बात सुनकर हँस पड़े। उन्हें लगा कि अर्जुन को भ्रम हो गया है। ठीक निर्णय कराने के लिये वे अर्जुन और श्रीकृष्ण के साथ पर्वत पर गये और बर्बरीक के सिर से पूछा- 'बेटा! तुमने पूरा युद्ध देखा है, बताओ कि युद्ध में कौरवों को किसने मारा है?'

बर्बरीक ने कहा- 'मैंने तो शत्रुओं के साथ केवल एक पुरुष को युद्ध करते देखा है, उसके बायीं ओर पाँच मुख थे और दस हाथ थे, जिनमें त्रिशूल आदि वह धारण किये था। दाहिनी ओर एक मुख और चार भुजाएँ थीं, जिनमें चक्र आदि अस्त्र-शस्त्र थे। बायीं ओर उसके जटाएँ थीं और ललाट पर चन्द्रमा शोभित हो रहे थे, अंगों में भस्म लगी थी। दाहिनी ओर मस्तक पर मुकुट झलमला रहा था, अंगों में चन्दन लगा था और कण्ठ में कौस्तुभमणि शोभा दे रहा था। उस पुरुष को छोड़कर कौरव-सेना का नाश करनेवाले दूसरे किसी पुरुष को मैंने नहीं देखा।'

बर्बरीक के ऐसा कहने पर आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी। भीमसेन लज्जित होकर भगवान से क्षमा माँगने लगे। भगवान् तो क्षमा के समुद्र हैं। उन्होंने हँसकर भीमसेन को गले लगा लिया।

भगवान ने बर्बरीक के सिर के पास जाकर कहा- 'तुमको इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिये।'

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai