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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> दिव्य संदेश

दिव्य संदेश

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9692
आईएसबीएन :978-1-61301-245

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सरल भाषा में शिवपुराण


7


बुरा न चाहो कभी किसी का, चाहो भला, करो कल्यान।
सबको सुख में ही सुख समझो, सबके हितमें ही हित जान।।

कभी किसीका बुरा मत चाहो, सबका भला चाहो। सबका कल्याण करो, सबके सुखमें ही अपना सुख और सबके हितमें ही हित समझो।

8

प्रेम करो सुख दो सब ही को, सबका करो सत्य सम्मान।
सबमें समझो निज आत्माको या सबमें देखो भगवान।।

सबमें प्रेम करो, सभीको सुख दो। सबका सच्चा सम्मान करो, सबमें अपने आत्माको समझो या सबमें भगवान् को देखो।

9

प्रभुने जो कुछ दिया, परिस्थिति दी जैसी उसमें हित मान।
मंगलमय प्रभुका विधान वह, सत् उपयोग करो सुभ जान।।

प्रभुने जो कुछ दिया है, जैसी परिस्थिति दी है - वही मंगलमय प्रभुका विधान है। उसीमें अपना हित मानकर, शुभ समझकर उसका सदुपयोग करो।

10

प्रभुकी कृपा अनन्त सदा है, उसपर करो पूर्ण विश्र्वास।
उनकी सहज सुह्रदतासे ही मिलती शान्ति परम अनयास।।

प्रभुकी तुमपर सदा अनन्त कृपा है, उसपर पूरा विश्र्वास करो। प्रभुकी सहज सुहृदतासे ही अनायास परम शान्ति मिलती है।

11


हैं अनित्य क्षणभंगुर दुखमय जगके सारे प्राणि-पदार्थ।
उनमें स्वार्थ न देखो, साधो मनसे सदा शुद्ध परमार्थ।।

जगत के समस्त प्राणि- पदार्थ अनित्य, क्षणभंगुर औऱ दु:खमय हैं। उनमें स्वार्थ मत देखो, मनसे सदा शुद्ध परमार्थ-साधन करो।

12


भोगोंकी आसक्ति-कामना तजकर हो जाओ निष्पाप।
प्रभुकी सुखद शरणमें जाओ, शान्ति मिलेगी अपने आप।।

भोगोंकी आसक्ति औऱ कामना को त्यागकर निष्पाप हो जाओ तथा प्रभु की सुखप्रद शरण में चले जाओ, अपने-आप ही शान्ति मिलेगी।

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