लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> दिव्य संदेश

दिव्य संदेश

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9692
आईएसबीएन :978-1-61301-245

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

166 पाठक हैं

सरल भाषा में शिवपुराण


13


नित्य निरन्तर प्रभु का पावन नाम जपो कर मन विश्वास।
मन में रखो सदा प्रभु को ही, रहो निरन्तर उनके पास।।

नित्य निरन्तर प्रभुके पवित्र नामका जप करो। मन में सदा प्रभु को ही बसाये रखो और निरन्तर उनके पास रहो।

14


दुर्लभ, सुलभ हुआ प्रभु की अनुकम्पासे मानव-जीवन।
इसका लाभ उठा लो पूरा, कर अर्पण मन-वाणी तन।।

प्रभुकी कृपा से दुर्लभ मानव-जीवन सुलभता से मिल गया है। मन, वाणी और शरीर को भगवान् के प्रति पूर्ण रूप से अर्पण करके इसका पूरा लाभ उठा लो।

15


सबमें सदा विराजित प्रभु हैं, सबमें वे हैं एक समान।
सबमें अपने शुभ कर्मोसे अविरत पूजो श्रीभगवान।।

प्रभु सब जीवोमें सदा ही विराजित हैं और वे सबमें एक समान हैं, अतएव अप ने शुभ कर्मोके द्वारा सबमें उन श्रीभगवान् की निरन्तर पूजा करो।

16


आश्रय सभी छोड़कर मनसे, होओ प्रभुके शरण अनन्य।
जन्म सफल होगा निश्चय ही, हो जायेगा जीवन धन्य।।

मन से सभी आश्रयों को छोड़कर प्रभुके अनन्य शरण हो जाओ, निश्चय ही, तुम्हारा जन्म सफल औऱ जीवन धन्य हो जायगा।

* * *


...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book