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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556
आईएसबीएन :9781613012864

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


'मानस' में दुर्बल चरित्रों का भी सदुपयोग किया गया है जैसे लक्ष्मण ने सुग्रीव के चरित्र में भय उत्पन्न करके भगवान् से मिलाया। राम को जब सुग्रीव भूल गये तब भगवान् राम ने कहा कि मैं सुग्रीव को कल मारूँगा। लक्ष्मणजी ने कहा कि कल क्यों? मैं आज ही जाकर उसको मार आता हूँ इसमें विलम्ब क्यों करें? भगवान् राम ने कहा कि नहीं! नहीं!! वह बड़ा डरपोक है, डर के मारे ही तो वह मेरा भक्त बना और जब डर मिट गया तो भक्ति भी टूट गयी। अत: तुम जरा डर पैदा करो। लक्ष्मण ने कहा कि अभी जाता हूँ। भगवान् ने फिर से लक्ष्मण को रोक दिया और बोले कि देखो, उसके डर का सदुपयोग करना। सुग्रीव बड़ा डरपोक है और बड़ा भगोड़ा है। ऐसा डराना कि भागकर मेरे समीप में ही आ जाय-
तब अनुजहि समुझावा रघुपति करुना सींव।
भय दिखाइ लै आवहु तात सखा सुग्रीव।। 4/18

ऐसा डराना कि इधर ही आवे, भाग न जाय। इसका अभिप्राय यह है कि भय की वृत्ति यदि हमें ईश्वर की दिशा में प्रेरित कर दे तो वह भय सार्थक है और साहस की वृत्ति यदि हमें अत्याचार करने की प्रेरणा दे तो उससे बढ़कर घातक कुछ नहीं हो सकता। 'रामायण' हमारे समग्र जीवन का सदुपयोग करने के लिए प्रेरक प्रसंग है। इसलिए जो लोग यही सोचते हैं कि श्रीराम को जब ईश्वर कहा गया तो हम उन्हें मनुष्य कहकर उनके चरित्र को कम बतायें तो हमारी विशेषता लगेगी तो वे लोग तो अपनी विशेषता स्थापित करने के लिए श्रीराम के मनुष्यत्व को और उस पर भी कुछ उनके चरित्र में आलोच्य पक्ष रखना चाहते हैं, पर हम तो उनसे यही प्रार्थना करेंगे कि ये तो हमारे मन्दिर की मूर्तियां हैं, ये हमारे देवता हैं, इन्हें अद्वितीय ही रहने दीजिए! इन्हें आप संग्रहालय की मूर्ति मत बनाइए!! संग्रहालय की मूर्ति और होती है और मन्दिर की मूर्ति और होती है। 'रामायण' के जो राम हैं, वे संग्रहालय की मूर्ति नहीं हैं, वे मन्दिर की मूर्ति हैं। उन्हें श्रद्धा और भक्ति के द्वारा हम अपने जीवन में प्राप्त करें और 'रामायण' को पढ़ते-पढ़ते और सुनते-सुनते हम स्वयं भी उसके एक पात्र बन जायँ, यही 'रामायण' की सार्थकता है।

जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल।
सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल।। 7/124 क

।।बोलिए सियावर रामचन्द्र की जय।।



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