लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> क्रोध

क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813
आईएसबीएन :9781613016190

Like this Hindi book 0

मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन

।। श्री राम: शरणं मम।।
अनुवचन

भक्ति का मुख्य उद्देश्य सत्यं, शिवं, सुन्दरं की सृष्टि है। इसीलिए वह व्यक्ति के इतिहास के स्थान पर भगवान् की लीला को अपना मुख्य केन्द्र बनाता है, उस लीला को गुण-दोष की दृष्टि से श्रवण, पठन का विषय नहीं बनाया जाना चाहिये।

महाभारत और श्रीमद्भागवत पुराण की रचना में यही मूलभूत अंतर है। यद्यपि दोनों के रचयिता श्री वेदव्यास हैं। जो मनुष्य भगवान् की लीला को छोड़कर अन्य कुछ कहने की इच्छा करता है, वह उस-इस इच्छा से ही निर्मित अनेक नाम और रूपों के चक्कर में पड़ जाता है। उसकी बुद्धि भेद-भाव से भर जाती है। जैसे हवा के झंकोरों से डगमगाती हुई नौका को कहीं भी ठहरने का ठौर नहीं मिलता वैसे ही उसकी चंचल बुद्धि कहीं भी स्थिर नहीं हो पाती-

ततोऽन्यथा किंचन यद्विवक्षतः पृथग्दृशस्तत्कृतरूपनामभिः।
न कुत्रचित्क्वापि च दुःस्थिता मतिर्लभेत वाताहतनौरिवास्पदम्।।


सारी सृष्टि ही गुण-दोष से भरी हुई है। वर्तमान में ही व्यक्ति लाखों व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है, और उनमें से अधिकांश हमारे मन पर कोई-न-कोई छाप छोड़ जाते हैं। गुण के द्वारा राग और दोष-दर्शन के द्वारा द्वेष हमारे मन पर छाये रहते हैं। वर्तमान में हमारा जिन लोगों से सम्पर्क होता है, उनसे कुछ-न-कुछ लाभ-हानि की समस्या भी जुड़ी रहती है। अत: एक सीमा तक उस प्रभाव से अछूता रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। किन्तु इतिहास तो हमें उन लोगों से जोड़ देता है, जिनसे हमें आज कुछ भी लेना-देना नहीं है। उन पात्रों के प्रति हमारे अन्तर्मन में राग-रोष उत्पन्न कर देता है। इस तरह वह हमारा बोझ हल्का करने के स्थान पर ऐसा अनावश्यक बोझ लाद देता है, जिसे केवल ढोना ही ढोना है।

Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book