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धर्म एवं दर्शन >> भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

भगवान श्रीराम सत्य या कल्पना

श्रीरामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :77
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9556
आईएसबीएन :9781613012864

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साधकगण इस प्रश्न का उत्तर हमेशा खोजते रहते हैं


श्रीभरतजी जैसे महान् पात्रों को ही सन्देश नहीं देते हैं, विभीषण को भी देते हें, सुग्रीव को भी देते हैं-
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। -श्रीहनुमान चालीसा

और उसके साथ-साथ एक बात और जोड़ देते हैं कि-
राम मिलाय राज पद दीन्हा।। -श्रीहनुमान चालीसा

यदि निष्कामता की भावना गायी जाय तो उससे सब लोग सन्तुष्ट नहीं होंगे। विद्यार्थी जब परीक्षा में पास होने के लिए हनुमानजी को मिठाई चढ़ाने का प्रस्ताव रखता है तो कहीं न कहीं उसको आशा है और उसको यह आस्था है कि हनुमानजी केवल राम को ही नहीं मिलाते हैं, बल्कि-
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

राम भी मिले और राज्य भी मिला। साधारण व्यक्ति को लगता है कि हमें तो दोनों ही मिलने चाहिए। हमको संसार की वस्तुएँ भी मिलनी चाहिए और हमको श्रीराम की भी आवश्यकता है 'रामायण' के जो विविध पात्र हैं, इन पात्रों में विभिन्नता है। कोई पात्र श्रेष्ठतम है, अलौकिक शक्ति वाला है तथा कोई पात्र साधारणतम भी है। हनुमानजी के चरित्र से केवल सीखना ही नहीं है, हमें उनसे प्रार्थना भी करनी है कि आप हमारे जीवन में प्रकाश दीजिए, हमारी बुद्धि को शुद्ध कीजिए-
कुमति निवारि सुमति के संगी।

इसका अभिप्राय है कि 'रामायण' में जो पात्र हैं वे हमारे और आपके जीवन के अत्यन्त निकट हैं। अलौकिक होने के नाते उनकी विशेषता यह है कि वे आज भी विद्यमान हैं। अगर हम उन्हें देख सकें और 'रामायण' के पात्रों में अपने आपको सम्मिलित कर सकें तो जीवन धन्य हो सकता है।

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