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उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

खाना हो गया, तो तीनों महेंद्र के कमरे में आ बैठे। राजलक्ष्मी ने कहा - 'तूने कहा था न, कोई किताब पढ़ेगा। शुरू कर न!'

महेंद्र बोला - 'मगर उसमें धर्म और देवताओं की कोई बात नहीं है। तुम्हें अच्छी नहीं लगेगी।'

अच्छी नहीं लगेगी! जैसे भी हो, अच्छी तो राजलक्ष्मी को लगनी ही थी। महेंद्र चाहे किसी भाषा में पढ़े, उसे अच्छी लगनी ही थी। आह, बेचारा महेंद्र, बहू काशी चली गई है। अकेला पड़ गया है। उसे जो अच्छा लगेगा, वह माँ को अच्छा क्यों नहीं लगेगा?

विनोदिनी बोली - 'एक काम क्यों नहीं करते भाई साहब, बुआ के कमरे में 'शांति-शतक' पड़ा है, आज वही पढ़ कर सुनाओ। बुआ को भी अच्छा लगेगा और शाम भी मजे में कटेगी।'

महेंद्र ने बड़े ही करुण भाव से एक बार विनोदिनी की तरफ देखा। इतने में किसी ने आ कर खबर दी - 'माँजी, ललाइन आ कर आपका इंतजार कर रही हैं।'

ललाइन राजलक्ष्मी की दिली दोस्त है। शाम को उनसे गप-शप करने का लोभ छोड़ सकना उनके लिए असंभव है। फिर भी वह नौकरानी से बोलीं - 'उनसे जा कर कह, आज मुझे महेंद्र से कुछ काम है। कल मगर जरूर आए। मैं उनकी प्रतीक्षा करूँगी।'

महेंद्र झट-पट बोल उठा - 'तुम उनसे मिल क्यों नहीं आती हो? माँ!'

विनोदिनी बोली - 'न हो तो तुम रुको बुआ; मैं ही बल्कि उनके पास जाती हूँ।'

राजलक्ष्मी प्रलोभन न छोड़ सकीं। बोलीं - 'बहू, तब तक तुम यहाँ बैठो - देखूँ, मैं अगर उन्हें रुखसत करके आ पाऊँ। पढ़ना शुरू करो तुम लोग। मेरी प्रतीक्षा की जरूरत नहीं है।'

राजलक्ष्मी का कमरे से बाहर जाना था कि महेंद्र से और न रहा गया। कह उठा - 'जान-बूझ कर क्यों तुम मुझे इस तरह परेशान करती हो?'

विनोदिनी ने अचरज से कहा - 'मैंने क्या सताया तुम्हें! मेरा आना गुनाह है क्या? तो फिर क्या जरूरत है, मैं जाती हूँ।'

और वह नाराज-सी हो कर उठने लगी।

महेंद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया। बोला - 'इसी तरह से तो तुम मुझे जलाया करती हो।'

विनोदिनी ने कहा - 'अच्छा, मुझे किसी बात की खबर न थी कि मुझमें इतना तेज है। और तुम्हारी जान तो कम कठिन नहीं है, बेहद झेल सकते हो। शक्ल से तो समझना मुश्किल है कि काफी जले-झुलसे हो।'

महेंद्र ने कहा - 'शक्ल से क्या समझोगी?' और जबरदस्ती विनोदिनी का हाथ खींच कर अपनी छाती से लगा लिया।

विनोदिनी 'उफ' कर उठी जोर से। महेंद्र ने झट उसका हाथ छोड़ दिया। पूछा - 'दर्द हो गया क्या?'

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