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उपन्यास >> आंख की किरकिरी

आंख की किरकिरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ebook
पुस्तक क्रमांक : 3984
आईएसबीएन :9781613015643

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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....

विनोदिनी ने कहा - 'ऐसा कहोगी बुआ, तो मैं समझूँगी तुम मुझे पराई समझती हो।'

दुलार से राजलक्ष्मी ने कहा - 'अहा बिटिया, तुम्हारी-जैसी अपनी और है कौन मेरी?'

विनोदिनी कपड़े सहेज चुकी। राजलक्ष्मी ने पूछा - 'तो अब चीनी का सिरका चढ़ा दूँ कि और कोई काम है तुम्हें?'

विनोदिनी बोली - 'नहीं बुआ, और कोई काम नहीं है। चलो मिठाइयाँ बना लूँ चल कर।'

महेंद्र बोला - 'अभी-अभी तो तुम रोना रो गईं कि इसे काम से ही परेशान करती रही और फिर तुरंत काम के लिए खींचे लिए जा रही हो।'

विनोदिनी की ठोड़ी पकड़ कर राजलक्ष्मी ने कहा - 'मेरी रानी बिटिया को तो काम करना ही पसंद है।'

महेंद्र बोला - 'आज मैंने सोच रखा था, इसके साथ कोई किताब पढूँगा बैठ कर क्योंकि मेरे पास कोई काम नहीं था।'

विनोदिनी ने कहा - 'ठीक है बुआ, शाम को हम दोनों भाई साहब का पढ़ना सुनेंगी - क्यों?'

राजलक्ष्मी ने सोचा- 'महेंद्र बड़ा अकेला पड़ गया है- उसे बहलाए रखना जरूरी है।' बोलीं - 'हाँ, ठीक तो है। खाना बना कर शाम हम लोग पढ़ना सुनने आएँ?'

कनखियों से विनोदिनी ने एक बार महेंद्र को देख लिया। वह बोला-'अच्छा।' लेकिन उसे कोई उत्साह नहीं रह गया। विनोदिनी राजलक्ष्मी के साथ-साथ चली गई।

नाराज हो कर महेंद्र ने सोचा - 'ठीक है, मैं भी कहीं चला जाऊँगा और देर से लौटूँगा।' और समय उसने बाहर जाने के लिए कपड़े बदले। बड़ी देर तक वह छत पर टहलता रहा, बार-बार जीने की तरफ ताकता रहा और अंत में कमरे में जा कर बैठ गया। खीझ कर मन-ही-मन बोला, 'आज मैं मिठाई नहीं खाऊँगा। माँ को यह बता दूँगा कि देर तक चीनी के रस को उबालते रहने से उसमें मिठास नहीं रहती।'

महेंद्र को भोजन कराने के समय आज विनोदिनी राजलक्ष्मी को साथ ले आई। दम फूलने के डर से वे ऊपर नहीं आना चाहती थीं। महेंद्र बहुत गंभीर हो कर खाने बैठा।

विनोदिनी बोली- 'अरे यह क्या भाई साहब, तुम तो आज कुछ खा ही नहीं रहे हो।'

परेशान हो कर राजलक्ष्मी ने पूछा - 'तबीयत तो खराब नहीं?'

विनोदिनी बोली - 'इतने जतन से मिठाइयाँ बनाईं, कुछ तो खानी ही पड़ेंगी। ठीक नहीं बनीं शायद। तो फिर रहने दो। जिद पर खाना भी क्या! रहने दो!'

महेंद्र बोला - 'अच्छी मुसीबत में डाल दिया है! मिठाई ही खाने की इच्छा ज्यादा है और अच्छी लग भी रही है; तुम रोको भी तो सुनने क्यों लगा भला।'

दोनों ही मिठाइयाँ महेंद्र रस ले कर खा गया।

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