उपन्यास >> आंख की किरकिरी आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....
पुरुष के कर्तत्व-अधिकार से परिपूर्ण महेंद्र स्याह-सूरत लिए बैठा रह गया। जब तक विनोदिनी आँखों से ओझल न हो गई, वह देखता रहा। बाहर आ कर देखा, विनोदिनी एक बग्घी पर बैठी है। उसने चुपचाप सामान रखवाया और कोच-बक्स पर बैठ गया। अपने अभिमान की मिट्टी पलीद होने के बाद उसमें विनोदिनी के सामने बैठने का मुँह न रहा।
लेकिन गाड़ी चली, तो चली। घंटा-भर बीत गया, शहर छोड़ कर वह खेतों की तरफ जा निकली। गाड़ीवान से पूछने में महेंद्र को संकोच हुआ। शायद गाड़ीवान यह सोचेगा कि असल में अंदर की औरत ही मालकिन है, इस बेकार आदमी से उसने यह भी सलाह नहीं की है कि कहाँ जाना है। वह कड़वा घूँट पी कर चुपचाप कोच-बक्स पर बैठा रहा।
गाड़ी यमुना के निर्जन तट पर सुंदर ढंग से लगाए एक बगीचे के सामने आ कर रुकी। महेंद्र हैरत में पड़ गया। 'किसका है यह बगीचा? इसका पता विनोदिनी को कैसे मालूम हुआ?'
फाटक बंद था। चीख-पुकार के बाद बूढ़ा रखवाला बाहर निकला। उसने कहा - 'बगीचे के मालिक धनी हैं, बहुत दूर नहीं रहते। उनकी इजाजत ले आएँ तो यहाँ ठहरने दूँगा।'
विनोदिनी ने एक बार महेंद्र की तरफ देखा। बगीचे के सुंदर घर को देख कर महेंद्र लुभा गया था - बहुत दिनों के बाद कुछ दिनों के लिए रुकने की उम्मीद से वह खुश हो गया। विनोदिनी से कहा - 'चलो, उस धनी के पास चलें। तुम बाहर गाड़ी पर रहना, मैं अंदर जा कर किराया तय कर लूँगा।'
विनोदिनी बोली - 'मैं अब चक्कर नहीं काट सकती। तुम जाओ, मैं तब तक यहीं सुस्ताती हूँ। डरने की कोई बात नहीं।'
महेंद्र गाड़ी ले कर चला गया। विनोदिनी ने उस बूढ़े ब्राह्मण को बुला कर उसके बाल-बच्चों के बारे में पूछा; वे कौन हैं, कहाँ काम करते हैं, बच्चियों की शादी कहाँ हुई है। उसकी स्त्री के देहांत हो जाने की बात सुन कर करुण स्वर में बोली - 'ओह, तब तो तुम्हें काफी तकलीफ है। इस उम्र में दुनिया में निरे अकेले पड़ गए हो, कोई देखने वाला नहीं!'
और बातों-बातों में विनोदिनी ने पूछा - 'यहाँ बिहारी बाबू न थे?'
बूढ़े ने कहा - 'जी हाँ, थे कुछ दिन। माँजी क्या उनको पहचानती हैं?' विनोदिनी बोली - 'वे हमारे अपने ही हैं।'
बूढ़े से बिहारी का जो हुलिया मिला, उसे विनोदिनी को कोई शुबहा न रहा। घर बुला कर उसने सब कुछ पूछ-ताछ लिया कि बिहारी किस कमरे में सोता था, कहाँ बैठता था। उसके चले जाने के बाद से घर बंद पड़ा था, इससे लगा कि उसमें बिहारी की गंध है। लेकिन यह पता न चल सका कि बिहारी गया कहाँ - शायद ही वह फिर लौटे।
महेंद्र ने किराया चुका कर मालिक से वहाँ रहने की इजाजत ले ली।
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