ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अकम्पो भक्तिकायस्तु कालहा नीललोहित:।
सत्यव्रतमहात्यागी नित्यशान्तिपरायण:।।१२१।।
९२४ अकम्पः - कम्पित न होनेवाले, ९२५ भक्तिकायः - भक्तिस्वरूप, ९२६ कालहा - कालनाशक, ९२७ नीललोहित: - नील और लोहितवर्णवाले, ९२८ सत्यव्रतमहात्यागी - सत्यवतधारी एवं महान् त्यागी, ९२९ नित्यशान्तिपरायणः -निरन्तर शान्त।।१२१।।
परार्थवृत्तिर्वरदो विरक्तस्तु विशारद:।
शुभद: शुभकर्ता च शुभनामा शुभ: स्वयम्।।१२२।।
९३० परार्थवृत्तिर्वरदः - परोपकारव्रती एवं अभीष्ट वरदाता, ९३१ विरक्त: - वैराग्यवान्, ९३२ विशारदः - विज्ञानवान्, ९३३ शुभद: शुभकर्ता - शुभ देने और करनेवाले, ९३४ शुभनामा शुभ: स्वयम् - स्वयं शुभस्वरूप होने के कारण शुभ नामधारी।।१२२।।
अनर्थितोऽगुणः साक्षी ह्यकर्ता कनकप्रभ:।
स्वभावभद्रो मध्यस्थ: शत्रुघ्नो विघ्ननाशन:।।१२३।।
९३५ अनर्थितः - याचनारहित, ९३६ अगुणः - निर्गुण, ९३७ साक्षी अकर्ता - द्रष्टा एवं कर्तृत्वरहित, ९३८ कनकप्रभः - सुवर्ण के समान कान्तिमान्, ९३९ स्वभावभद्र: - स्वभावत: कल्याणकारी, ९४० मध्यस्थ: - उदासीन, ९४१ शत्रुघ्न: - शत्रुनाशक, ९४२ विघ्ननाशन: - विघ्नों का निवारण करने वाले।।१२३।।
शिखण्डी कवची शूली जटी मुण्डी च कुण्डली।
अमृत्यु: सर्वदृक्सिंहस्तेजोराशिर्महामणि:।।१२४।।
९४३ शिखण्डी कवची शूली - मोरपंख, कवच और त्रिशूल धारण करनेवाले, ९४४ जटी मुण्डी च कुण्डली - जटा, मुण्डमाला और कवच धारण करनेवाले, ९४५ अमृत्यु: - मृत्युरहित, ९४६ सर्वदृक् सिंह: - सर्वज्ञो में श्रेष्ठ, ९४७ तेजोराशिर्महामणि: - तेजःपुंज महामणि कौस्तुभादि रूप ।।१२४।।
असंख्येयोऽप्रमेयात्मा वीर्यवान् वीर्यकोविद:।
वेद्यश्चैव वियोगात्मा परावरमुनीश्वर:।।१२५।।
९४८ असंख्येयोऽप्रमेयात्मा - असंख्य नाम, रूप और गुणों से युक्त होने के कारण किसी के द्वारा मापे न जा सकनेवाले, ९४९ वीर्यवान् वीर्यकोविदः - पराक्रमी एवं पराक्रम के ज्ञाता, ९५० वेद्य: - जानने योग्य, ९५१ वियोगात्मा - दीर्घकाल तक सती के वियोग में अथवा विशिष्ट योग की साधना में संलग्न हुए मनवाले, ९५२ परावरमुनीश्वर: - भूत और भविष्य के ज्ञाता मुनीश्वररूप।।१२५।।
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