ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
सत्त्ववान्सात्त्विक: सत्यकीर्ति: स्नेहकृतागम: ।
अकम्पितो गुणग्राही नैकात्मा नैककर्मकृत् ।।११६।।
८८३ सत्त्ववान् - सत्त्वगुण से युक्त, ८८४ सात्त्विकः -सत्त्वनिष्ठ, ८८५ सत्यकीर्ति: - सत्यकीर्ति वाले, ८८६ स्नेहकृतागमः - जीवों के प्रति स्नेह के कारण विभिन्न आगमों को प्रकाश में लानेवाले, ८८७ अकम्पित: - सुस्थिर, ८८८ गुणग्राही - गुणों का आदर करनेवाले, ८८९ नैकात्मा नैककर्मकृत् - अनेक रूप होकर अनेक प्रकार के कर्म करने वाले।।११६।।
सुप्रीत: सुमुख: सूक्ष्म: सुकरो दक्षिणानिल:।
नन्दिस्कन्धधरो धुर्य: प्रकट: प्रीतिवर्धन: ।।११७।।
८९० सुप्रीतः - अत्यन्त प्रसन्न, ८९१ सुमुखः - सुन्दर मुखवाले, ८९२ सूक्ष्म: - स्थूलभाव से रहित, ८९३ सुकरः -सुन्दर हाथवाले, ८९४ दक्षिणानिल: - मलयानिल के समान सुखद, ८९५ नन्दिस्कन्धधर: - नन्दी की पीठ पर सवार होनेवाले, ८९६ धुर्य: - उत्तरदायित्व का भार वहन करने में समर्थ, ८९७ प्रकट: - भक्तों के सामने प्रकट होने वाले अथवा ज्ञानियों के सामने नित्य प्रकट, ८१८ प्रीतिवर्धन: - प्रेम बढ़ानेवाले।।११७।।
अपराजित: सर्वसत्त्वो गोविन्द: सत्त्ववाहन:।
अमृत: स्वधृतः सिद्ध: पूतमूर्तिर्यशोधन:।।११८।।
८९९ अपराजित: - किसी से परास्त न होनेवाले, ९०० सर्वसत्त्व: - सम्पूर्ण सत्त्वगुण के आश्रय अथवा समस्त प्राणियों की उत्पत्ति के हेतु, ९०१ गोविन्द: - गोलोक की प्राप्ति करानेवाले, ९०२ सत्त्ववाहन: - सत्त्वस्वरूप धर्ममय वृषभ से वाहन का काम लेनेवाले, ९०३ अधृत: - आधाररहित, ९०४ स्वधृत: - अपने-आप में ही स्थित, ९०५ सिद्ध: - नित्यसिद्ध, ९०६ पूतमूर्ति: - पवित्र शरीरवाले, ९०७ यशोधन: - सुयश के धनी।।११८।।
वाराहश्रृङ्गधृक्छृंगी बलवानेकनायक:।
श्रुतिप्रकाश: श्रुतिमानेकबन्धुरनेककृत्र।।११९।।
९०८ वाराहश्रृङ्गधृक्छृंगी - वाराह को मारकर उसके दाढ़रूपी श्रृंगों को धारण करने के कारण श्रृंगी नाम से प्रसिद्ध, ९०९ बलवान् - शक्तिशाली, ९१० एकनायक: - अद्वितीय नेता, ९११ श्रुतिप्रकाश: - वेदों को प्रकाशित करनेवाले, ९१२ श्रुतिमान् - वेदज्ञान से सम्पन्न, ९१३ एकबन्धु: - सबके एकमात्र सहायक, ९१४ अनेककृत् - अनेक प्रकार के पदार्थों की सृष्टि करनेवाले।।११९।।
श्रीवत्सलशिवारम्भ: शान्तभद्र: समो यश:।
भूशयो भूषणो भूतिर्भूतकृद् भूतभावन:।।१२०।।
९१५ श्रीवत्सलशिवारम्भः - श्रीवत्सधारी विष्णु के लिये मंगलकारी, ९१६ शान्तभद्र: - शान्त एवं मंगलरूप, ९१७ समः - सर्वत्र समभाव रखने वाले, ९१८ यश: - यशस्वरूप, ९१९ भूशयः - पृथ्वी पर शयन करने वाले, ९२० भूषणः - सबको विभूषित करनेवाले, ९२१ भूतिः - कल्याणस्वरूप, ९२२ भूतकृत् - प्राणियों की सृष्टि करने वाले, ९२३ भूतभावनः - भूतों के उत्पादक।।१२०।।
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