ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अनन्तदृष्टिरानन्दो दण्डो दमयिता दम:।
अभिवाद्यो महामायो विश्वकर्मविशारद:।।३१।।
२४३ अनन्तदृष्टि: - असीमित दृष्टिवाले, २४४ आनन्द: - परमानन्दमय, २४५ दण्ड: - दुष्टों को दण्ड देनेवाले अथवा दण्डस्वरूप, २४६ दमयिता - दुर्दान्त दानवों का दमन करनेवाले, २४७ दम: - दमनस्वरूप, २४८ अभिवाद्य: - प्रणाम करनेयोग्य, २४९ महामाय: - मायावियों को भी मोहनेवाले महामायावी, २५० विश्वकर्मविशारद: - संसार की सृष्टि करने में कुशल।।३१।।
वीतरागो विनीतात्मा तपस्वी भूतभावन:।
उन्मत्तवेष: प्रच्छन्तो जितकामो जितप्रिय:।।३२।।
२५१ वीतराग: - पूर्णतया विरक्त, २५२ विनीतात्मा - मन से विनयशील अथवा मन को वश में रखनेवाले, २५३ तपस्वी - तपस्यापरायण, २५४ भूतभावन: - सम्पूर्ण भूतों के उत्पादक एवं रक्षक, २५५ उन्मत्तवेष: - पागलों के समान वेष धारण करनेवाले, २५६ प्रच्छन्न: - माया के पर्दे में छिपे हुए, २५७ जितकाम: - कामविजयी, २५८ अजितप्रिय: - भगवान् विष्णु के प्रेमी।।३२।।
कल्याणप्रकृति: कल्प: सर्वलोकप्रजापति:।
तरस्वी तारको धीमान् प्रधान: प्रभुरव्यय:।।३३।।
२५९ कल्याणप्रकृतिः - कल्याणकारी स्वभाववाले, २६० कल्प - समर्थ, २६१ सर्वलोकप्रजापतिः - सम्पूर्ण लोकों की प्रजा के पालक, २६२ तरस्वी - वेगशाली, २६३ तारक: - उद्धारक, २६४ धीमान् - विशुद्ध बुद्धि से युक्त, २६५ प्रधान: - सबसे श्रेष्ठ, २६६ प्रभुः - सर्वसमर्थ, २६७ अव्यय: - अविनाशी।।३३।।
लोकपालोऽन्तर्हितात्मा कल्पादि: कमलेक्षण:।
वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञोऽनियमो नियताश्रय:।।३४।।
२६८ लोकपालः - समस्त लोकों की रक्षा करनेवाले, २६९ अन्तर्हितात्मा - अन्तर्यामी आत्मा अथवा अदृश्य स्वरूपवाले, २७० कल्पादिः - कल्प के आदिकारण, २७१ कमलेक्षणः - कमल के समान नेत्रवाले, २७२ वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः - वेदों और शास्त्रों के अर्थ एवं तत्त्व को जाननेवाले, २७३ अनियम: - नियन्त्रण रहित, २७४ नियताश्रय - सबके सुनिश्चित आश्रयस्थान।।३४।।
चन्द्र: सूर्य: शनि: केतुर्वराङ्गो विद्रुमच्छवि:।
भक्तिवश्य: परब्रह्म मृगबाणार्पणोऽनघ:।।३५।।
२७५ चन्द्र: - चन्द्रमारूप से आह्लादकारी, २७६ सूर्य - सबकी उत्पत्तिके हेतुभूत सूर्य, २७७ शनि: - शनैश्चररूप, २७८ केतु: - केतु नामक ग्रहस्वरूप, २७९ वराङ्गः - सुन्दर शरीर वाले, २८० विद्रुमच्छवि: - मूँगे की-सी लाल कान्तिवाले, २८१ भक्तिवश्य: - भक्ति के द्वारा भक्त के वश में होनेवाले, २८२ परब्रह्म - परमात्मा, २८३ मृगबाणार्पण: - मृगरूपधारी यज्ञ पर बाण चलानेवाले, २८४ अनघः - पापरहित।।३५।।
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