ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिता शिव पुराण 4 - कोटिरुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
महाहृदो महागर्त: सिद्धवृन्दारवन्दित:।
व्याघ्रचर्माम्बरो व्याली महाभूतो महानिधि:।।२६।।
२०२ महाहृद: - परमानन्द के महान् सरोवर, २०३ महागर्त: - महान् आकाशरूप, २०४ सिद्धवृन्दारवन्दित: - सिद्धों और देवताओं द्वारा वन्दित, २०५ व्याघ्रचर्माम्बर: - व्याघ्रचर्म को वस्त्र के समान धारण करनेवाले, २०६ व्याली - सर्पों को आभूषण की भांति धारण करनेवाले, २०७ महाभूत: - त्रिकाल में भी कभी नष्ट न होनेवाले महाभूतस्वरूप, २०८ महानिधि: - सबके महान् निवासस्थान।।२६।।
अमृताशोऽमृतवपु: पाञ्चजन्य: प्रभञ्जन:।
पञ्चविंशतितत्त्वस्थ: पारिजात: परावर:।।२७।।
२०९ अमृताश: - जिनकी आशा कभी विफल न हो ऐसे अमोघ-संकल्प, २१० अमृतवपु: - जिनका कलेवर कभी नष्ट न हो ऐसे - नित्यविग्रह, २११ पाञ्चजन्य: - पांचजन्य नामक शंखस्वरूप, २१२ प्रभञ्जन: - वायुस्वरूप अथवा संहारकारी, २१३ पञ्चविंशतितत्त्वस्थ: - प्रकृति, महत्तत्त्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, रसना, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मन, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश - इन चौबीस जड़ तत्त्वों सहित पचीसवें चेतनतत्त्व पुरुष में व्याप्त, २१४ पारिजात: - याचकों की इच्छा पूर्ण करनेमें कल्पवृक्षरूप, २१५ परावर: - कारण-कार्य रूप ।।२७।।
सुलभ: सुव्रत: शूरो ब्रह्मवेदनिधिर्निधि:।
वर्णाश्रमगुरुर्वर्णी शत्रुजिच्छत्रुतापन:।।२८।।
२१६ सुलभ: - नित्य-निरन्तर चिन्तन करने वाले एकनिष्ठ श्रद्धालु भक्त को सुगमता से प्राप्त होनेवाले, २१७ सुव्रत: - उत्तम व्रतधारी, २१८ शूर: - शौर्यसम्पन्न, २१९ ब्रह्मवेदनिधि: - ब्रह्मा और वेद के प्रादुर्भाव के स्थान, २२० निधि: - जगत्-रूपी रत्न के उत्पत्ति स्थान, २२१ वर्णाश्रमगुरु: - वर्णों और आश्रमों के गुरु (उपदेष्टा), २२२ वर्णी - ब्रह्मचारी, २२३ शत्रुजित् - अन्धकासुर आदि शत्रुओं को जीतनेवाले, २२४ शत्रुतापन: - शत्रुओं को संताप देनेवाले।।२८।।
आश्रम: क्षपण: क्षामो ज्ञानवानचलेश्वर:।
प्रमाणभूतो दुर्ज्ञेय: सुपर्णो वायुवाहन:।।२९।।
२२५ आश्रम: - सबके विश्रामस्थान, २२६ क्षपण: - जन्म-मरण के कष्ट का मूलोच्छेद करनेवाले, २२७ क्षाम: - प्रलयकाल में प्रजा को क्षीण करनेवाले, २२८ ज्ञानवान् - ज्ञानी, २२९ अचलेश्वर: - पर्वतों अथवा स्थावर पदार्थों के स्वामी, २३० प्रमाणभूत: - नित्यसिद्ध प्रमाणरूप, २३१ दुर्ज्ञेय: - कठिनता से जानने योग्य, २३२ सुपर्ण: - वेदमय सुन्दर पंखवाले, गरुड़रूप, २३३ वायुवाहन: - अपने भय से वायु को प्रवाहित करनेवाले।।२१।।
धनुर्धरो धनुर्वेदो गुणराशिर्गुणाकर:।
सत्य: सत्यपरोऽदीनो धर्माङ्गो धर्मसाधन:।।३०।।
२३४ धनुर्धर: - पिनाकधारी, २३५ धनुर्वेद: - धनुर्वेद के ज्ञाता, २३६ गुणराशि: - अनन्त कल्याणमय गुणों की राशि, २३७ गुणाकर: - सद्गुणों की खानि, २३८ सत्य: - सत्यस्वरूप, २३९ सत्यपर: - सत्यपरायण, २४० अदीन: - दीनता से रहित-उदार, २४१ धर्माङ्ग: - धर्ममय विग्रहवाले, २४२ धर्मसाधन: - धर्म का अनुष्ठान करनेवाले।।३०।।
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