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शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

बालरूपी शिव ने कहा- मुनिश्रेष्ठ विश्वानर! तुमने आज मुझे संतुष्ट कर दिया है। भूदेव! मेरा मन परम प्रसन्न हो गया है अत: अब तुम उत्तम वर माँग लो। यह सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वानर कृतकृत्य हो गये और उनका मन हर्षमग्न हो गया। तब वे उठकर बालरूपधारी शंकरजी से बोले।

विश्वानरने कहा- प्रभावशाली महेश्वर! आप तो सर्वान्तर्यामी, ऐश्वर्यसम्पन्न, शर्व तथा भक्तों को सब कुछ दे डालनेवाले हैं। भला, आप सर्वज्ञ से कौन-सी बात छिपी है। फिर भी आप मुझे दीनता प्रकट करनेवाली यांचा के प्रति आकृष्ट होने के लिये क्यों कह रहे हैं। महेशान! ऐसा जानकर आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा कीजिये।

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! पवित्र व्रत में तत्पर विश्वानर के उस वचनको सुनकर पावन शिशुरूपधारी महादेव हँसकर शुचि विश्वानर से बोले- 'शुचे! तुमने अपने हृदय में अपनी पत्नी शुचिष्मती के प्रति जो अभिलाषा कर रखी है वह निस्संदेह थोड़े ही समय में पूर्ण हो जायगी। महामते! मैं शुचिष्मती के गर्भ से तुम्हारा पुत्र होकर प्रकट होऊँगा। मेरा नाम गृहपति होगा। मैं परम पावन तथा समस्त देवताओं के लिये प्रिय होऊँगा। जो मनुष्य एक वर्ष तक शिवजी के संनिकट तुम्हारे द्वारा कथित इस पुण्यमय अभिलाषाष्टक स्तोत्र का तीनों काल पाठ करेगा, उसकी सारी अभिलाषाएँ यह पूर्ण कर देगा। इस स्तोत्र का पाठ पुत्र, पौत्र और धन का प्रदाता, सर्वथा शान्तिकारक, सारी विपत्तियों का विनाशक, स्वर्ग और मोक्षरूप सम्पत्ति का कर्ता तथा समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है। निस्संदेह यह अकेला ही समस्त स्तोत्रों के समान है।'

नन्दीश्वरजी कहते हैं- मुने! इतना कहकर बालरूपधारी शम्भु, जो सत्पुरूषों की गति है अन्तर्धान हो गये। तब विप्रवर विश्वानर भी प्रसन्न मन से अपने घर को लौट गये।

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