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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

शिव पुराण 3 - शतरुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2080
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का विस्तृत वर्णन...

ईश! आपके रहस्य को न तो साक्षात् वेद ही जानता है न विष्णु, न अखिल विश्व के विधाता ब्रह्मा, न योगीन्द्र और न इन्द्र आदि प्रधान देवताओं को ही इसका पता है; परंतु आपका भक्त उसे जान लेता है अत: मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूँ। ईश! न तो आपका कोई गोत्र है न जन्म है, न नाम है न रूप है, न शील है और न देश है; ऐसा होनेपर भी आप त्रिलोकी के अधीश्वर तथा सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाले है इसलिये मैं आपका भजन करता हूँ। स्मरारे! आप सर्वस्वरूप हैं यह सारा विश्वप्रपंच आप से ही प्रकट हुआ है। आप गौरी के प्राणनाथ, दिगम्बर और परम शान्त हैं। बाल, युवा और वृद्धरूप में आप ही वर्तमान हैं। ऐसी कौन-सी वस्तु है जिसमें आप व्याप्त न हों; अत: मैं आपके चरणोंमें नतमस्तक हूँ।

विश्वानर उवाच-
एकं ब्रह्मैवाद्वितीय समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किंचित्।
एको रुद्रो न द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशम्।।

कर्ता हर्ता त्वं हि सर्वस्य शम्भो नानारूपेष्वेकरूपोऽप्यरूपः।
यद्वत्प्रत्यग्धर्म एकोऽप्यनेकस्तस्मान्नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये।।

रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रौप्यं नरैः पूरस्तन्मृगाख्ये मरीचौ।

यद्वत्तद्वद्विश्वगेष प्रपञ्चो यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम्।।

तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्नौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसाद:।

पुष्पे गन्धो दुग्धमध्येऽपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये।।

शब्दं गृह्णास्यश्रवास्त्वं हि जिघ्रस्यघ्राणस्त्वं व्यङ्घ्रिरायासि दूरात्।

व्यक्षः पश्येस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्व: कस्त्वां सम्यग्वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये।।

नो वेदस्त्वामीश साक्षाद्धि वेद नो वा विष्णुर्नो विधाताखिलस्य।

नो योगीन्द्रा नेन्द्रमुख्याश्च देवा भक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये।।

नो ते गोत्रं नेश जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शीलं न देश:।

इत्थम्भूतोऽपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्या: सर्वान् कामान् पूरयेस्तद् भजेत्चाम्।।

त्चत्तः सर्व त्वं हि सर्व स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोऽतिशान्तः।

त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्त्वं यत् किं नास्यतस्त्वां नतोऽहम्।।

(शि० पु० शतरुद्रसंहिता १३। ४२-४१)

नन्दीश्वर कहते हैं- मुने! यों स्तुति करके विप्रवर विश्वानर हाथ जोड़कर भूमि पर गिरना ही चाहते थे, तब तक सम्पूर्ण वृद्धों के भी वृद्ध बालरूपधारी शिव परम हर्षित होकर उन भूदेव से बोले।

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