ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्माजी का रुद्रदेव से सती के साथ विवाह करने का अनुरोध, श्रीविष्णु द्वारा अनुमोदन और श्रीरुद्र की इसके लिये स्वीकृति
ब्रह्माजी कहते हैं- श्रीविष्णु आदि देवताओं द्वारा की हुई उस स्तुति को सुनकर सबकी उत्पत्ति के हेतुभूत भगवान् शंकर बड़े प्रसन्न हुए और जोर-जोर से हँसने लगे। मुझ ब्रह्मा और विष्णु को अपनी-अपनी पत्नी के साथ आया हुआ देख महादेवजी ने हमलोगों से यथोचित वार्तालाप किया और हमारे आगमन का कारण पूछा।
रुद्र बोले- हे हरे! हे विधे! तथा हे देवताओ और महर्षियो! आज निर्भय होकर यहाँ अपने आने का ठीक-ठीक कारण बताओ। तुम लोग किसलिये यहाँ आये हो और कौन-सा कार्य आ पड़ा है? वह सब मैं सुनना चाहता हूँ; क्योंकि तुम्हारे द्वारा की गयी स्तुति से मेरा मन बहुत प्रसन्न है।
मुने! महादेवजी के इस प्रकार पूछने पर भगवान् विष्णु की आज्ञा से मैंने वार्तालाप आरम्भ किया।
मुझ ब्रह्मा ने कहा- देवदेव! महादेव! करुणासागर। प्रभो! हम दोनों इन देवताओं और ऋषियों के साथ जिस उद्देश्य से यहाँ आये हैं, उसे सुनिये। वृषभध्वज! विशेषत: आप के ही लिये हमारा यहाँ आगमन हुआ है; क्योंकि हम तीनों सहार्थी हैं- सृष्टि-चक्र के संचालनरूप प्रयोजन की सिद्धि के लिये एक-दूसरे के सहायक हैं। सहार्थी को सदा परस्पर यथायोग्य सहयोग करना चाहिये अन्यथा यह जगत् टिक नहीं सकता। महेश्वर! कुछ ऐसे असुर उत्पन्न होंगे, जो मेरे हाथ से मारे जायँगे। कुछ भगवान् विष्णु के और कुछ आपके हाथों नष्ट होंगे। महाप्रभो। कुछ असुर ऐसे होंगे, जो आप के वीर्य से उत्पन्न हुए पुत्र के हाथ से ही मारे जा सकेंगे। प्रभो! कभी कोई विरले ही असुर ऐसे होंगे, जो माया के हाथों द्वारा वध को प्राप्त होंगे। आप भगवान् शंकर की कृपा से ही देवताओं को सदा उत्तम सुख प्राप्त होगा। घोर असुरों का विनाश करके आप जगत् को सदा स्वास्थ्य एवं अभय प्रदान करेंगे अथवा यह भी सम्भव है कि आप के हाथ से कोई भी असुर न मारे जायँ; क्योंकि आप सदा योगयुक्त रहते हुए राग-द्वेष से रहित हैं तथा एकमात्र दया करने में ही लगे रहते हैं। ईश! यदि वे असुर भी आराधित हो - आपकी दया से अनुगृहीत होते रहें तो सृष्टि और पालन का कार्य कैसे चल सकता है।
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