ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
मुने! इसी समय सब देवता और ऋषि भगवान् विष्णु और मुझको आगे करके सती की तपस्या देखने के लिये गये। वहाँ आकर देवताओं ने देखा, सती मूर्तिमती दूसरी सिद्धि के समान जान पड़ती हैं। वे भगवान् शिव के ध्यान मंो निमग्न हो उस समय सिद्धावस्था को पहुँच गयी थीं। समस्त देवताओं ने बड़ी प्रसन्नता के साथ वहाँ दोनों हाथ जोड़कर सती को नमस्कार किया, मुनियों ने भी मस्तक झुकाये तथा श्रीहरि आदि के मन में प्रीति उमड़ आयी। श्रीविष्णु आदि सब देवता और मुनि आश्चर्यचकित हो सती देवी की तपस्या की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। फिर देवी को प्रणाम करके वे देवता और मुनि तुरंत ही गिरिश्रेष्ठ कैलास को गये, जो भगवान् शिव को बहुत ही प्रिय है। सावित्री के साथ मैं और लक्ष्मी के साथ भगवान् वासुदेव भी प्रसन्नतापूर्वक महादेवजी के निकट गये। वहाँ जाकर भगवान् शिव को देखते ही बड़े वेग से प्रणाम करके सब देवताओं ने दोनों हाथ जोड़ विनीतभाव से नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति करके अन्त में कहा-
प्रभो! आप की सत्त्व, रज और तम नामक जो तीन शक्तियाँ हैं उनके राग आदि वेग असह्य हैं। वेदत्रयी अथवा लोकत्रयी आपका स्वरूप है। आप शरणागतों के पालक हैं तथा आपकी शक्ति बहुत बड़ी है- उसकी कहीं कोई सीमा नहीं है; आपको नमस्कार है। दुर्गापते! जिनकी इन्द्रियाँ दुष्ट हैं-वश में नहीं हो पातीं, उनके लिये आपकी प्राप्ति का कोई मार्ग सुलभ नहीं है। आप सदा भक्तों के उद्धार में तत्पर रहते हैं, आपका तेज छिपा हुआ है; आपको नमस्कार है। आप की मायाशक्तिरूपा जो अहंबुद्धि है उससे आत्मा का स्वरूप ढक गया है; अतएव यह कुबुद्धि जीव अपने स्वरूप को नहीं जान पाता। आप की महिमा का पार पाना अत्यन्त कठिन (ही नहीं, सर्वथा असम्भव) है। हम आप महाप्रभु को मस्तक झुकाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! इस प्रकार महादेवजी की स्तुति करके श्रीविष्णु आदि सब देवता उत्तम भक्ति से मस्तक झुकाये प्रभु शिवजी के आगे चुपचाप खड़े हो गये।
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