ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अत: दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करनेवाली सती ने महेश्वर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये अपने घर पर ही उनकी आराधना आरम्भ की। आश्विन मास में नन्दा (प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी) तिथियों में उन्होंने भक्ति-पूर्वक गुड़ भात और नमक चढ़ाकर भगवान् शिव का पूजन किया और उन्हें नमस्कार करके उसी नियम के साथ उस मास को व्यतीत किया। कार्तिक मास की चतुर्दशी को सजाकर रखे हुए मालपूओं और खीर से परमेश्वर शिव की आराधना करके वे निरन्तर उनका चिन्तन करने लगीं। मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को तिल, जौ और चावल से हर की पूजा करके ज्योतिर्मय दीप दिखाकर अथवा आरती करके सती दिन बिताती थीं। पौष मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी को रातभर जागरण करके प्रातः काल खिचड़ी का नैवेद्य लगा वे शिव की पूजा करती थीं। माघ की पूर्णिमा को रात में जागरण करके सबेरे नदी में नहातीं और गीले वस्त्र से ही तटपर बैठकर भगवान् शंकर की पूजा करती थीं। फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को रात में जागरण करके उस रात्रि के चारों पहरों में शिवजी की विशेष पूजा करतीं और नटों द्वारा नाटक भी कराती थीं। चैत्र मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को वे दिन-रात शिव का स्मरण करती हुई समय बितातीं और ढाक के फूलों तथा दवनोंसे भगवान् शिव की पूजा करती थीं। वैशाख शुक्ला तृतीया को सती तिल का आहार करके रहतीं और नये जौ के भात से रुद्रदेव की पूजा करके उस महीने को बिताती थीं। ज्येष्ठ की पूर्णिमा को रात में सुन्दर वस्त्रों तथा भटकटैया के फूलों से शंकरजी की पूजा करके वे निराहार रहकर ही वह मास व्यतीत करती थीं। आषाढ़ के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को काले वस्त्र और भटकटैया के फूलों से वे रुद्रदेव का पूजन करती थीं। श्रावण मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी को वे यज्ञोपवीतों, वस्त्रों तथा कुश की पवित्री से शिव की पूजा किया करती थीं। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को नाना प्रकार के फूलों और फलों से शिव का पूजन करके सती चतुर्दशी तिथि को केवल जल का आहार किया करतीं। भांति-भांति के फलों, फूलों और उस समय उत्पन्न होनेवाले अन्नों द्वारा वे शिव की पूजा करतीं और महीने भर अत्यन्त नियमित आहार करके केवल जप में लगी रहती थीं। सभी महीनों में सारे दिन सती शिव की आराधना में ही संलग्न रहती थीं। अपनी इच्छा से मानवरूप धारण करनेवाली वे देवी दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रत का पालन करती थीं। इस प्रकार नन्दा व्रत को पूर्णरूप से समाप्त करके भगवान् शिव में अनन्यभाव रखने वाली सती एकाग्रचित्त हो बड़े प्रेम से भगवान् शिव का ध्यान करने लगीं तथा उस ध्यान में ही निश्चलभाव से स्थित हो गयीं।
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