ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
वसिष्ठजी बोले- शुभानने! जो सबसे महान् और उत्कृष्ट तेज हैं जो उत्तम और महान् तप हैं तथा जो सबके परमाराध्य परमात्मा हैं उन भगवान् शम्भु को तुम हृदय में धारण करो। जो अकेले ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के आदि कारण हैं उन त्रिलोकी के आदिस्रष्टा, अद्वितीय पुरुषोत्तम शिव का भजन करो। आगे बताये जानेवाले मन्त्र से देवेश्वर शंकर की आराधना करो। उससे तुम्हें सब कुछ मिल जायगा, इसमें संशय नहीं है। 'ॐ नम: शंकराय ॐ' इस मन्त्र का निरन्तर जप करते हुए मौन तपस्या आरम्भ करो और जो मैं नियम बताता हूँ, उन्हें सुनो। तुम्हें मौन रहकर ही स्नान करना होगा, मौनालम्बनपूर्वक ही महादेवजी की पूजा करनी होगी। प्रथम दो बार छठे समय में तुम केवल जल का पूर्ण आहार कर सकती हो। जब तीसरी बार छठा समय आये, तब केवल उपवास किया करो। इस तरह तपस्या की समाप्ति तक छठे काल में जलाहार एवं उपवास की क्रिया होती रहेगी। देवि! इस प्रकार की जानेवाली मौन तपस्या ब्रह्मचर्य का फल देनेवाली तथा सम्पूर्ण अभीष्ट मनोरथों को पूर्ण करनेवाली होती है। यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है। अपने चित्त में ऐसा शुभ उद्देश्य लेकर इच्छानुसार शंकरजी का चिन्तन करो, वे प्रसन्न होनेपर तुम्हें अवश्य ही अभीष्ट फल प्रदान करेंगे।
इस तरह संध्या को तपस्या करने की विधि का उपदेश दे मुनिवर वसिष्ठ यथोचितरूप से उससे विदा ले वहीं अन्तर्धान हो गये।
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