ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
शिवपूजन की सर्वोत्तम विधि का वर्णन
ब्रह्माजी कहते हैं- अब मैं पूजा की सर्वोत्तम विधि बता रहा हूँ, जो समस्त अभीष्ट तथा सुखों को सुलभ करानेवाली है। देवताओ तथा ऋषियो! तुम ध्यान देकर सुनो। उपासक को चाहिये कि वह ब्राह्ममुहूर्त में शयन से उठकर जगदम्बा पार्वती सहित भगवान् शिव का स्मरण करे तथा हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर भक्तिपूर्वक उनसे प्रार्थना करे- 'देवेश्वर! उठिये, उठिये! मेरे हृदय-मन्दिर में शयन करनेवाले देवता! उठिये! उमाकान्त! उठिये और ब्रह्माण्ड में सबका मंगल कीजिये। मैं धर्म को जानता हूँ, किंतु मेरी उस में प्रवृत्ति नहीं होती। मैं अधर्म को जानता हूँ परंतु मैं उससे दूर नहीं हो पाता। महादेव! आप मेरे हृदय में स्थित होकर मुझे जैसी प्रेरणा देते हैं वैसा ही मैं करता हूँ।'
इस प्रकार भक्तिपूर्वक कहकर और गुरुदेव की चरणपादुकाओं का स्मरण करके गाँव से बाहर दक्षिणदिशा में मल-मूत्र का त्याग करने के लिये जाय। मलत्याग करने के बाद मिट्टी और जल से धोने के द्वारा शरीर की शुद्धि करके दोनों हाथों और पैरों को धोकर दतुअन करे, सूर्योदय होने से पहले ही दतुअन करके मुँह को सोलह बार जल की अजलियों से धोये। देवताओ तथा ऋषियो! षष्ठी, प्रतिपदा, अमावस्या और नवमी तिथियों तथा रविवार के दिन शिवभक्त को यत्नपूर्वक दतुअन को त्याग देना चाहिये। अवकाश के अनुसार नदी आदि में जाकर अथवा घर में ही भलीभांति स्नान करे। मनुष्य को देश और काल के विरुद्ध स्नान नहीं करना चाहिये। रविवार, श्राद्ध, संक्रान्ति, ग्रहण, महादान, तीर्थ उपवास-दिवस अथवा अशौच प्राप्त होने पर मनुष्य गरम जल से स्नान न करे। शिवभक्त मनुष्य तीर्थ आदि में प्रवाह के सम्मुख होकर स्नान करे। जो नहाने के पहले तेल लगाना चाहे उसे विहित एवं निषिद्ध दिनों का विचार करके ही तैलाभ्यंग करना चाहिए। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तेल लगाता हो, उसके लिये किसी दिन भी तैलाभ्यंग दूषित नहीं है अथवा जो तेल, इत्र आदि से वासित हो, उसका लगाना किसी दिन भी दूषित नहीं है। सरसों का तेल ग्रहण को छोड़कर दूसरे किसी दिन भी दूषित नहीं होता। इस तरह देश-काल का विचार करके ही विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान के समय अपने मुख को उत्तर अथवा पूर्व की ओर रखना चाहिये।
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