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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

उच्छिष्ट वस्त्र का उपयोग कभी न करे। शुद्ध वस्त्र से इष्टदेव के स्मरणपूर्वक स्नान करे। जिस वस्त्र को दूसरे ने धारण किया हो अथवा जो दूसरों के पहनने की वस्तु हो तथा जिसे स्वयं रात में धारण किया गया हो, वह वस्त्र उच्छिष्ट कहलाता है। उससे तभी स्नान किया जा सकता है जब उसे धो लिया गया हो। स्नान के पश्चात् देवताओं, ऋषियों तथा पितरों को तृप्ति देनेवाला स्नानांग तर्पण करना चाहिये। उसके बाद धुला हुआ वस्त्र पहने और आचमन करे। द्विजोत्तमो! तदनन्तर गोबर आदि से लीप-पोतकर स्वच्छ किये हुए शुद्ध स्थान में जाकर वहाँ सुन्दर आसन की व्यवस्था करे। वह आसन विशुद्ध काष्ठ का बना हुआ, पूरा फैला हुआ तथा विचित्र होना चाहिये। ऐसा आसन सम्पूर्ण अभीष्ट तथा फलों को देनेवाला है। उसके ऊपर बिछाने के लिये यथायोग्य मृगचर्म आदि ग्रहण करे। शुद्ध बुद्धिवाला पुरुष उस आसन पर बैठकर भस्म से त्रिपुण्ड्र लगाये। त्रिपुण्ड्र से जप-तप तथा दान सफल होता है। भस्म के अभाव में त्रिपुण्ड्र का साधन जल आदि बताया गया है। इस तरह त्रिपुण्ड्र करके मनुष्य रुद्राक्ष धारण करे और अपने नित्यकर्म का सम्पादन करके फिर शिव की आराधना करे। तत्पश्चात् तीन बार मन्त्रोच्चारणपूर्वक आचमन करे। फिर वहाँ शिव की पूजा के लिये अन्न और जल लाकर रखे। दूसरी कोई भी जो वस्तु आवश्यक हो, उसे यथाशक्ति जुटाकर अपने पास रखे। इस प्रकार पूजनसामग्री का संग्रह करके वहाँ धैर्यपूर्वक स्थिरभाव से बैठे। फिर जल, गन्ध और अक्षत से युक्त एक अर्ध्यपात्र लेकर उसे दाहिने भाग में रखे। उससे उपचार की सिद्धि होती है। फिर गुरु का स्मरण करके उनकी आज्ञा लेकर विधिवत् संकल्प करके अपनी कामना को अलग न रखते हुए पराभक्ति से सपरिवार शिव का पूजन करे। एक मुद्रा दिखाकर सिन्दूर आदि उपचारों द्वारा सिद्धि-बुद्धि सहित विघ्नहारी गणेश का पूजन करे। लक्ष और लाभ से युक्त गणेश जी का पूजन करके उनके नाम के आदि में प्रणव तथा अन्त में नम : जोड़कर नाम के साथ चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करते हुए नमस्कार करे। (ॐ गणपतये नम: अथवा  ॐ लक्षलाभयुताय सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नम:) तदनन्तर उनसे क्षमा-प्रार्थना करके पुन: भाई कार्तिकेय सहित गणेशजी का पराभक्ति से पूजन करके उन्हें बारंबार नमस्कार करे। तत्पश्चात् सदा द्वार पर खड़े रहनेवाले द्वारपाल महोदय का पूजन करके सती-साध्वी गिरिराजनन्दिनी उमा की पूजा करे। चन्दन, कुंकुम तथा धूप, दीप आदि अनेक उपचारों तथा नाना प्रकार के नैवेद्यों से शिवा का पूजन करके नमस्कार करने के पश्चात् साधक शिवजी के समीप जाय। यथासम्भव अपने घर में मिट्टी, सोना, चाँदी, धातु या अन्य पारे आदि की शिव-प्रतिमा बनाये और उसे नमस्कार करके भक्तिपरायण हो उसकी पूजा करे। उसकी पूजा हो जाने पर सभी देवता पूजित हो जाते हैं।

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