ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
सनत्कुमार ने कहा- पितरों की तीनों कन्याओ! तुम प्रसन्नचित्त होकर मेरी बात सुनो। यह तुम्हारे शोक का नाश करनेवाली और सदा ही तुम्हें सुख देनेवाली है। तुममें से जो ज्येष्ठ है वह भगवान् विष्णु की अंशभूत हिमालय गिरि की पत्नी हो। उससे जो कन्या होगी, वह 'पार्वती' के नाम से विख्यात होगी। पितरों की दूसरी प्रिय कन्या, योगिनी धन्या राजा जनक की पत्नी होगी। उसकी कन्याके रूपमें महालक्ष्मी अवतीर्ण होंगी, जिनका नाम 'सीता' होगा। इसी प्रकार पितरों की छोटी पुत्री कलावती द्वापर के अन्तिम भाग में वृषभानु वैश्य की पत्नी होगी और उसकी प्रिय पुत्री 'राधा' के नाम से विख्यात होगी। योगिनी मेनका (मेना) पार्वतीजी के वरदान से अपने पति के साथ उसी शरीर से कैलास नामक परमपद को प्राप्त हो जायगी। धन्या तथा उनके पति, जनककुल में उत्पन्न हुए जीवन्मुक्त महायोगी राजा सीरध्वज, लक्ष्मीस्वरूपा सीता के प्रभाव से वैकुण्ठधाम में जायँगे। वृषभानु के साथ वैवाहिक मंगलकृत्य सम्पन्न होनेके कारण जीवन्मुक्त योगिनी कलावती भी अपनी कन्या राधा के साथ गोलोकधाम में जायगी - इसमें संशय नहीं है। विपत्ति में पड़े बिना कहाँ किनकी महिमा प्रकट होती है। उत्तम कर्म करनेवाले पुण्यात्मा पुरुषों का संकट जब टल जाता है तब उन्हें दुर्लभ सुख की प्राप्ति होती है। अब तुमलोग प्रसन्नतापूर्वक मेरी दूसरी बात भी सुनो, जो सदा सुख देनेवाली है। मेना की पुत्री जगदम्बा पार्वती देवी अत्यन्त दुस्सह तप करके भगवान् शिव की प्रिय पत्नी बनेंगी। धन्या की पुत्री सीता भगवान् श्रीरामजी की पत्नी होंगी और लोकाचार का आश्रय ले श्रीराम के साथ विहार करेंगी। साक्षात् गोलोकधाम में निवास करनेवाली राधा ही कलावती की पुत्री होंगी। वे गुप्त स्नेह में बँधकर श्रीकृष्ण की प्रियतमा बनेंगी।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! इस प्रकार शाप के ब्याज से दुर्लभ वरदान देकर सबके द्वारा प्रशंसित भगवान् सनत्कुमार मुनि भाइयों सहित वहीं अन्तर्धान हो गये। तात। पितरों की मानसी पुत्री वे तीनों बहिनें इस प्रकार शापमुक्त हो सुख पाकर तुरंत अपने घर को चली गयीं।
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