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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

ब्रह्माजी बोले- मुने! मैंने अपने दक्ष नामक जिस पुत्र की पहले चर्चा की है उनके साठ कन्याएँ हुई थीं, जो सृष्टि की उत्पत्ति में कारण बनीं। नारद! दक्ष ने कश्यप आदि श्रेष्ठ मुनियों के साथ उनका विवाह किया था, यह सब वृत्तान्त तो तुम्हें विदित ही है। अब प्रस्तुत विषय को सुनो। उन कन्याओं में एक स्वधा नाम की कन्या थी, जिसका विवाह उन्होंने पितरों के साथ किया। स्वधा की तीन पुत्रियाँ थीं, जो सौभाग्य-शालिनी तथा धर्मकी मूर्ति थीं। उनमेंसे ज्येष्ठ पुत्रीका नाम 'मेना' था। मँझली 'धन्या' के नाम से प्रसिद्ध थी और सबसे छोटी कन्याका नाम 'कलावती' था। ये सारी कन्याएँ पितरों की मानसी पुत्रियाँ थीं- उनके मन से प्रकट हुई थीं। इनका जन्म किसी माता के गर्भसे नहीं हुआ था, अतएव ये अयोनिजा थीं; केवल लोकव्यवहार से स्वधा की पुत्री मानी जाती थीं। इनके सुन्दर नामों का कीर्तन करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है। ये सदा सम्पूर्ण जगत् की वन्दनीया लोकमाताएँ हैं और उत्तम अभ्युदय से सुशोभित रहती हैं। सब-की-सब परम योगिनी, ज्ञाननिधि तथा तीनों लोकों में सर्वत्र जा सकने वाली हैं। मुनीश्वर! एक समय वे तीनों बहिनें भगवान् विष्णु के निवास स्थान श्वेत द्वीप में उनका दर्शन करने के लिये गयीं। भगवान् विष्णु को प्रणाम और भक्तिपूर्वक उनकी स्तुति करके वे उन्हीं की आज्ञा से वहाँ ठहर गयीं। उस समय वहाँ संतों का बड़ा भारी समाज एकत्र हुआ था। मुने! उसी अवसर पर मेरे पुत्र सनकादि सिद्धगण भी वहाँ गये और श्रीहरि की स्तुति-वन्दना करके उन्हीं की आज्ञा से वहीं ठहर गये। सनकादि मुनि देवताओं के आदिपुरुष और सम्प्रर्ण लोकों में वन्दित हैं। वे जब वहाँ आकर खड़े हुए, उस समय श्वेतद्वीप के सब लोग उन्हें देख प्रणाम करते हुए उठकर खड़े हो गये। परंतु ये तीनों बहिनें उन्हें देखकर भी वहाँ नहीं उठीं। इससे सनत्कुमार ने उनको (मर्यादा-रक्षार्थ) उन्हें स्वर्ग से दूर होकर नर-स्त्री बनने का शाप दे दिया। फिर उनके प्रार्थना करने पर वे प्रसन्न हो गये और बोले।

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