ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
''भगवान् शिव ही सबके स्वामी तथा परात्पर परमेश्वर हैं। वे समस्त देवताओं के सम्यक् सेव्य हैं और सबका कल्याण करनेवाले हैं। इन्हीं के दर्शनकी इच्छा से सिद्ध पुरुष तपस्या करते हैं और इन्हीं के साक्षात्कार की अभिलाषा मन में लेकर योगीलोग योग-साधना में प्रवृत्त होते हैं। अनन्त धन-धान्य और यज्ञ-याग आदि का सबसे महान् फल यही बताया गया है कि भगवान् शंकर का दर्शन सुलभ हो। शिव ही जगत् का धारण-पोषण करनेवाले हैं। वे ही समस्त विद्याओं के पति एवं सब कुछ करने में समर्थ हैं। आदिविद्या के श्रेष्ठ स्वामी और समस्त मंगलों के भी मंगल वे ही हैं। दुष्ट दक्ष! तूने उनकी शक्ति का आज सत्कार नहीं किया है। इसीलिये इस यज्ञ का विनाश हो जायगा। पूजनीय व्यक्तियों की पूजा न करने से अमंगल होता ही है। तूने परम पूज्य शिवस्वरूपा सती का पूजन नहीं किया है। शेषनाग अपने सहस्र मस्तकों से प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक जिनके चरणों की रज धारण करते हैं उन्हीं भगवान् शिव की शक्ति सतीदेवी थीं। जिनके चरणकमलों का निरन्तर ध्यान और सादर पूजन करके ब्रह्माजी ब्रह्मत्व को प्राप्त हुए हैं उन्हीं भगवान् शिव की प्रिय पत्नी सतीदेवी थीं। जिनके चरणकमलों का निरन्तर ध्यान और सादर पूजन करके इन्द्र आदि लोकपाल अपने-अपने उत्तम पद को प्राप्त हुए हैं वे भगवान् शिव सम्पूर्ण जगत् के पिता हैं और शक्तिस्वरूपा सतीदेवी जगत् की माता कही गयी हैं। मूढ़ दक्ष! तूने उन माता- पिता का सत्कार नहीं किया, फिर तेरा कल्याण कैसे होगा।
''तुझ पर दुर्भाग्य का आक्रमण हो गया और विपत्तियाँ टूट पड़ी; क्योंकि तूने उन भवानी सती और भगवान् शंकर की भक्ति-भाव से आराधना नहीं की।' कल्याणकारी शम्भु का पूजन न करके भी मैं कल्याण का भागी हो सकता हूँ' यह तेरा कैसा गर्व है? वह दुर्वार गर्व आज नष्ट हो जायगा। इन देवताओं मे से कौन ऐसा है जो सर्वेश्वर शिव से विमुख होकर तेरी सहायता करेगा?
मुझे तो ऐसा कोई देवता नहीं दिखायी देता। यदि देवता इस समय तेरी सहायता करेंगे तो जलती आग से खेलने वाले पतंगों के समान नष्ट हो जायँगे। आज तेरा मुँह जल जाय, तेरे यज्ञ का नाश हो जाय और जितने तेरे सहायक हैं वे भी आज शीघ्र ही जल मरें। इस दुरात्मा दक्ष की जो सहायता करनेवाले हैं उन समस्त देवताओं के लिये आज शपथ है। वे तेरे अमंगलके लिये ही तेरी सहायता से विरत हो जायें। समस्त देवता आज इस यज्ञमण्डप से निकलकर अपने-अपने स्थान को चले जायँ, अन्यथा सब लोगों का सब प्रकारसे नाश हो जायगा। अन्य सब मुनि और नाग आदि भी इस यज्ञ से निकल जायँ, अन्यथा आज सब लोगों का सर्वथा नाश हो जायगा। श्रीहरे! और विधातः! आप लोग भी इस यज्ञमण्डप से शीघ्र निकल जाइये।''
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! सम्पूर्ण यज्ञशाला में बैठे हुए लोगों से ऐसा कहकर सबका कल्याण करनेवाली वह आकाशवाणी मौन हो गयी।
* * *
|