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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ३२ 

गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्षपर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञविध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! वह आकाशवाणी सुनकर सब देवता आदि भयभीत तथा विस्मित हो गये। उनके मुख से कोई बात नहीं निकली। वे इस तरह खड़े या बैठे रह गये, मानो उनपर विशेष मोह छा गया हो। भृगु के मन्त्रबल से भाग जाने के कारण जो वीर शिवगण नष्ट होने से बच गये थे, वे भगवान् शिव की शरण में गये। उन सबने अमित तेजस्वी भगवान् रुद्र को भलीभांति सादर प्रणाम करके वहाँ यज्ञमें जो कुछ हुआ था, वह सारी घटना उनसे कह सुनायी।

गण बोले- महेश्वर! दक्ष बड़ा दुरात्मा और घमंडी है। उसने वहाँ जाने पर सती देवी का अपमान किया और देवताओं ने भी उनका आदर नहीं किया। अत्यन्त गर्व से भरे हुए उस दुष्ट दक्ष ने आपके लिये यज्ञ में भाग नहीं दिया। दूसरे देवताओं के लिये दिया और आपके विषय में उच्चस्वर से दुर्वचन कहे। प्रभो! यज्ञ में आपका भाग न देखकर सतीदेवी कुपित हो उठीं और पिता की बारंबार निन्दा करके उन्होंने तत्काल अपने शरीर को योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। यह देख दस हजार से अधिक पार्षद लज्जावश शस्त्रों द्वारा अपने ही अंगों को काट-काटकर वहाँ मर गये। शेष हमलोग दक्ष पर कुपित हो उठे और सबको भय पहुँचाते हुए वेगपूर्वक उस यज्ञ का विध्वंस करने को उद्यत हो गये; परंतु विरोधी भृगु ने अपने प्रभाव से हमें तिरस्कृत कर दिया। हम उनके मन्त्रबल का सामना न कर सके। प्रभो! विश्वम्भर! वे ही हमलोग आज आप की शरणमें आये हैं। दयालो! वहाँ प्राप्त हुए भय से आप हमें बचाइये, निर्भय कीजिये। महाप्रभो! उस यज्ञ में दक्ष आदि सभी दुष्टों ने घमंड में आकर आपका विशेषरूप से अपमान किया है। कल्याणकारी शिव! इस प्रकार हमने अपना, सतीदेवी का और मूढ़ बुद्धिवाले दक्ष आदि का भी सारा वृत्तान्त कह सुनाया। अब आपकी जैसी इच्छा हो, वैसा करें।

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