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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ३१ 

आकाशवाणी द्वारा दक्ष की भर्त्सना, उनके विनाश की सूचना तथा समस्त देवताओं को यज्ञमण्डप से निकल जाने की प्रेरणा

ब्रह्माजी कहते हैं- मुनीश्वर! इसी बीच में वहाँ दक्ष तथा देवता आदिके सुनते हुए आकाशवाणी ने यह यथार्थ बात कही- ''रे-रे दुराचारी दक्ष! ओ दम्भाचारपरायण महामूढ़! यह तूने कैसा अनर्थकारी कर्म कर डाला? ओ मूर्ख! शिवभक्तराज दधीचि के कथनको भी तूने प्रामाणिक नहीं माना, जो तेरे लिये सब प्रकार से आनन्ददायक और मंगलकारी था। वे ब्राह्मण देवता तुझे दुस्सहशाप देकर तेरी यज्ञशाला से निकल गये तो भी तुझ मूढ़ ने अपने मन में कुछ भी नहीं समझा। उसके बाद तेरे घर में मंगलमयी सतीदेवी स्वत: पधारीं, जो तेरी अपनी ही पुत्री थीं; किंतु तूने उनका भी परम आदर नहीं किया! ऐसा क्यों हुआ? ज्ञानदुर्बल दक्ष! तूने सती और महादेवजी की पूजा नहीं की, यह क्या किया? 'मैं ब्रह्माजी का बेटा हूँ' ऐसा समझकर तू व्यर्थ ही घमंड में भरा रहता है और इसीलिये तुझ पर मोह छा गया है। वे सतीदेवी ही सत्पुरुषों की आराध्या देवी हैं अथवा सदा आराधना करने के योग्य हैं वे समस्त पुण्यों का फल देनेवाली, तीनों लोकों की माता, कल्याणस्वरूपा और भगवान् शंकर के आधे अंग में निवास करनेवाली हैं। वे सती देवी ही पूजित होनेपर सदा सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करनेवाली हैं। वे ही महेश्वर की शक्ति हैं और अपने भक्तों को सब प्रकार के मंगल देती हैं। वे सतीदेवी ही पूजित होनेपर सदा संसार का भय दूर करती हैं, मनोवांछित फल देती हैं तथा वे ही समस्त उपद्रवों को नष्ट करनेवाली देवी हैं। वे सती ही सदा पूजित होनेपर कीर्ति और सम्पत्ति प्रदान करती हैं। वे ही पराशक्ति तथा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली परमेश्वरी हैं। वे सती ही जगत् को जन्म देनेवाली माता, जगत् की रक्षा करनेवाली अनादि शक्ति और प्रलयकाल में जगत् का संहार करनेवाली हैं। वे जगन्माता सती ही भगवान् विष्णु की मातारूप से सुशोभित होनेवाली तथा ब्रह्मा, इन्द्र, चन्द्र, अग्नि एवं सूर्यदेव आदि की जननी मानी गयी हैं। वे सती ही तप, धर्म और दान आदि का फल देनेवाली हैं। वे ही शम्भुशक्ति महादेवी हैं तथा दुष्टों का हनन करनेवाली परात्पर शक्ति हैं। ऐसी महिमावाली सतीदेवी जिनकी सदा प्रिय धर्मपत्नी हैं उन भगवान् महादेव को तूने यज्ञ में भाग नहीं दिया! अरे! तू कैसा मूढ़ और कुविचारी है।

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