लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

जिस समय सब लोग ऐसा कह रहे थे, उसी समय शिवजी के पार्षद सती का यह अद्भुत प्राणत्याग देख तुरंत ही क्रोधपूर्वक अस्त्र-शस्त्र ले दक्ष को मारने के लिये उठ खड़े हुए। यज्ञमण्डप के द्वारपर खड़े हुए वे भगवान् शंकर के समस्त साठ हजार पार्षद, जो बड़े भारी बलवान् थे, अत्यन्त रोष से भर गये और 'हमें धिक्कार है धिक्कार है', ऐसा कहते हुए भगवान् शंकर के गणों के वे सभी वीर यूथपति बारंबार उच्चस्वर से हाहाकार करने लगे। देवर्षे! कितने ही पार्षद तो वहाँ शोक से ऐसे व्याकुल हो गये कि वे अत्यन्त तीखे प्राणनाशक शस्त्रों द्वारा अपने ही मस्तक और मुख आदि अंगोंपर आघात करने लगे। इस प्रकार बीस हजार पार्षद उस समय दक्षकन्या सती के साथ ही नष्ट हो गये। वह एक अद्भुत-सी बात हुई। नष्ट होने से बचे हुए महात्मा शंकर के वे प्रमथगण क्रोधयुक्त दक्ष को मारने के लिये हथियार लिये उठ खड़े हुए। मुने! उन आक्रमणकारी पार्षदों का वेग देखकर भगवान् भृगु ने यज्ञ में विध्न डालनेवालों का नाश करनेके लिये नियत 'अपहता असुरा: रक्षांसि वेदिषद' इस यजुर्मन्त्र से दक्षिणाग्नि में आहुति दी। भृगु के आहुति देते ही यज्ञकुण्ड से ऋभु नामक सहस्त्रों महान् देवता, जो बड़े प्रबल वीर थे, वहाँ प्रकट हो गये। मुनीश्वर! उन सबके हाथ में जलती हुई लकड़ियाँ थीं। उनके साथ प्रमथगणों का अत्यन्त विकट युद्ध हुआ, जो सुननेवालों के भी रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। उन ब्रह्मतेज से सम्पन्न महावीर ऋभुओं की सब ओर से ऐसी मार पड़ी, जिससे प्रमथगण बिना अधिक प्रयास के ही भाग खड़े हुए। इस प्रकार उन देवताओं ने उन शिवगणों को तुरंत मार भगाया। यह अद्भुत-सी घटना भगवान् शिव की महाशक्तिमती इच्छा से ही हुई। वह सब देखकर ऋषि, इन्द्रादि देवता, मरुद्गण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार और लोकपाल चुप ही रहे। कोई सब ओर से आ-आकर वहाँ भगवान् विष्णु से प्रार्थना करते थे कि किसी तरह विध्न टल जाय। वे उद्विग्न हो बारंबार विघ्न-निवारण के लिये आपस में सलाह करने लगे। प्रमथगणों के नाश होने और भगाये जाने से जो भावी परिणाम होनेवाला था, उसका भलीभांति विचार करके उत्तम बुद्धिवाले श्रीविष्णु आदि देवता अत्यन्त उद्विग्न हो उठे थे। मुने! इस प्रकार दुरात्मा शंकर-द्रोही ब्रह्मबन्धु दक्ष के यज्ञ में उस समय बड़ा भारी विघ्न उपस्थित हो गया।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book