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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ३ ०

सती का योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर देना, दर्शकों का हाहाकार, शिवपार्षदों का प्राणत्याग तथा दक्ष पर आक्रमण, ऋभुओं द्वारा उनका भगाया जाना तथा देवताओं की चिन्ता

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! मौन हुई सतीदेवी अपने पतिका सादर स्मरण करके शान्तचित्त हो सहसा उत्तरदिशा में भूमिपर बैठ गयीं। उन्होंने विधिपूर्वक जल का आचमन करके वस्त्र ओढ़ लिया और पवित्रभाव से आँखें मूँदकर पति का चिन्तन करती हुई वे योगमार्ग में स्थित हो गयीं। उन्होंने आसन को स्थिरकर प्राणायाम द्वारा प्राण और अपान को एकरूप करके नाभि-चक्र में स्थित किया। फिर उदान वायु को बलपूर्वक नाभिचक्र से ऊपर उठाकर बुद्धि के साथ हृदय में स्थापित किया। तत्पश्चात् शंकर की प्राणवल्लभा अनिन्दिता सती उस हृदयस्थित वायु को कण्ठमार्ग से भूकुटियों के बीच में ले गयीं। इस प्रकार दक्षपर कुपित हो सहसा अपने शरीर को त्यागने की इच्छा से सती ने अपने सम्पूर्ण अंगों में योगमार्ग के अनुसार वायु और अग्नि की धारणा की। तदनन्तर अपने पति के चरणारविन्दों का चिन्तन करती हुई सती ने अन्य सब वस्तुओं का ध्यान भुला दिया। उनका चित्त योगमार्ग में स्थित हो गया था। इसलिये वहाँ उन्हें पति के चरणों के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखायी दिया। मुनिश्रेष्ठ! सती का निष्पाप शरीर तत्काल गिरा और उनकी इच्छा के अनुसार योगाग्नि से जलकर उसी क्षण भस्म हो गया। उस समय वहाँ आये हुए देवता आदि ने जब यह घटना देखी, तब वे बड़े जोर से हाहाकार करने लगे। उनका वह महान्, अद्भुत, विचित्र एवं भयंकर हाहाकार आकाश में और पृथ्वीतल पर सब ओर फैल गया। लोग कह रहे थे- 'हाय! महान् देवता भगवान् शंकर की परम प्रेयसी सतीदेवी ने किस दुष्ट के दुर्व्यवहार से कुपित हो अपने प्राण त्याग दिये। अहो! ब्रह्माजी के पुत्र इस दक्ष की बड़ी भारी दुष्टता तो देखो। सारा चराचर जगत् जिसकी संतान है उसी की पुत्री मनस्विनी सतीदेवी, जो सदा ही मान पाने के योग्य थीं, उसके द्वारा ऐसी निरादृत हुईं कि प्राणों से ही हाथ धो बैठीं। भगवान् वृषभध्वज की प्रिया सती सदा सभी सत्युरुषों के द्वारा निरन्तर सम्मान पाने की अधिकारिणी थीं। वास्तव में उसका हृदय बड़ा ही असहिष्णु है। वह प्रजापति दक्ष ब्राह्मणद्रोही है। इसलिये सारे संसार में उसे महान् अपयश प्राप्त होगा। उसकी अपनी ही पुत्री उसी के अपराध से जब प्राणत्याग करने को उद्यत हो गयी, तब भी उस महानरकभोगी शंकरद्रोही ने उसे रोकातक नहीं!'

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