ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ऐसा कहनेके बाद शिवस्वरूपा परमेश्वरी सतीने भगवान् विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र आदि सब देवताओं को तथा समस्त ऋषियों को बड़े कड़े शब्दोंमें फटकारा।
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! इस प्रकार क्रोध से भरी हुई जगदम्बा सती ने वहाँ व्यथित हृदय से अनेक प्रकार की बातें कहीं। श्रीविष्णु आदि समस्त देवता और मुनि जो वहाँ उपस्थित थे, सती की बात सुनकर चुप रह गये। अपनी पुत्री के वैसे वचन सुनकर कुपित हुए दक्ष ने सती की ओर कूर दृष्टि से देखा और इस प्रकार कहा।
दक्ष बोले- भद्रे! तुम्हारे बहुत कहने से क्या लाभ। इस समय यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं है। तुम जाओ या ठहरो, यह तुम्हारी इच्छापर निर्भर है। तुम यहाँ आयी ही क्यों? समस्त विद्वान् जानते हैं कि तुम्हारे पति शिव अमंगलरूप हैं। वे कुलीन भी नहीं हैं। वेद से बहिष्कृत हैं और भूतों, प्रेतों तथा पिशाचों के स्वामी हैं। वे बहुत ही कुवेष धारण किये रहते हैं। इसीलिये रुद्र को इस यज्ञ के लिये नहीं बुलाया गया है। बेटी! मैं रुद्र को अच्छी तरह जानता हूँ। अत: जान-बूझकर ही मैंने देवर्षियों की सभा में उनको आमन्त्रित नहीं किया है। रुद्र को शास्त्र के अर्थ का ज्ञान नहीं है। वे उद्दण्ड और दुरात्मा हैं। मुझ मूढ़ पापी ने ब्रह्माजी के कहने से उनके साथ तुम्हारा विवाह कर दिया था। अत: शुचिस्मिते! तुम क्रोध छोड़कर स्वस्थ (शान्त) हो जाओ। इस यज्ञ में तुम आ ही गयी तो स्वयं अपना भाग (या दहेज) ग्रहण करो।
दक्ष के ऐसा कहनेपर उनकी त्रिभुवन-पूजिता पुत्री सती ने शिव की निन्दा करनेवाले अपने पिता की ओर जब दृष्टिपात किया, तब उनका रोष और भी बढ़ गया। वे मन-ही-मन सोचने लगीं कि 'अब मैं शंकरजी के पास कैसे जाऊँगी। यदि शंकरजी के दर्शन की इच्छासे वहाँ गयी और उन्होंने यहाँका समाचार पूछा तो मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगी?' तदनन्तर तीनों लोकोंकी जननी सती रोषा-वेशसे युक्त हो लंबी साँस खींचती हुई अपने दुष्टहृदय पिता दक्षसे बोलीं।
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