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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

सतीने कहा- जो महादेवजीकी निन्दा करता है अथवा जो उनकी होती हुई निन्दा को सुनता है वे दोनों तबतक नरक में  पड़े रहते हैं जबतक चन्द्रमा और सूर्य विद्यमान हैं।'

यो निन्दति महादेव निन्यमानं मृणोति वा।
तावुभौ नरक यातो यावच्चन्द्रदिवाकरौ।।

(शि० पु० रु० सं० स० ख० २९। ३८ )

अत: तात! मैं अपने इस शरीर को त्याग दूँगी, जलती आगमें प्रवेश कर जाऊँगी। अपने स्वामी का अनादर सुनकर अब मुझे अपने इस जीवनकी रक्षासे क्या प्रयोजन। यदि कोई समर्थ हो तो वह स्वयं विशेष यत्न करके शम्भु की निन्दा करनेवाले पुरुषकी जीभ को बलपूर्वक काट डाले। तभी वह शिव-निन्दा-श्रवणके पापसे शुद्ध हो सकता है इसमें संशय नहीं है। यदि कुछ कर सकने में असमर्थ हो तो बुद्धिमान् पुरुष को चाहिये कि वह दोनों कान बंद करके वहाँसे निकल जाय। इससे वह शुद्ध रहता है - दोषका भागी नहीं होता। ऐसा श्रेष्ठ विद्वान् कहते हैं।

इस प्रकार धर्मनीति बतानेपर सती को अपने आने के कारण बड़ा पश्चात्ताप हुआ। उन्होंने व्यथित चित्त से भगवान् शंकर के वचन का स्मरण किया। फिर सती अत्यन्त कुपित हो दक्ष से, उन विष्णु आदि समस्त देवताओं से तथा मुनियों से भी निडर होकर बोलीं।

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