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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय २९ 

यज्ञशाला में शिव का भाग न देखकर सती के रोषपूर्ण वचन, दक्ष द्वारा शिव की निन्दा सुन दक्ष तथा देवताओं को धिक्कार-फटकार कर सती द्वारा अपने प्राण-त्याग का निश्चय

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! दक्षकन्या सती उस स्थान पर गयीं, जहाँ वह महान् प्रकाश से युक्त यज्ञ हो रहा था। वहाँ देवता, असुर और मुनीन्द्र आदि के द्वारा कौतूहलपूर्ण कार्य हो रहे थे। सती ने वहाँ अपने पिता के भवनको नाना प्रकारकी आश्चर्यजनक वस्तुओं से सम्पन्न, उत्तम प्रभासे परिपूर्ण, मनोहर तथा देवताओं और ऋषियों के समुदायसे भराहुआ देखा। देवी सती भवनके द्वारपर जाकर खड़ी हुईं और अपने वाहन नन्दीसे उतरकर अकेली ही शीघ्रतापूर्वक यज्ञशालाके भीतर चली गयीं। सतीको आयी देख उनकी यशस्विनी माता असिक्नी (वीरिणी) ने और बहिनों ने उनका यथोचित आदर-सत्कार किया। परंतु दक्षने उन्हें देखकर भी कुछ आदर नहीं किया तथा उन्हीं के भय से शिवकी माया से मोहित हुए दूसरे लोग भी उनके प्रति आदर का भाव न दिखा सके। मुने! सब लोगों के द्वारा तिरस्कार प्राप्त होने से सती देवी को बड़ा विस्मय हुआ तो भी उन्होंने अपने माता-पिताके चरणोंमें मस्तक झुकाया। उस यज्ञ में सती ने विष्णु आदि देवताओं के भाग देखे, परंतु शम्भु का भाग उन्हें कहीं नहीं दिखायी दिया। तब सती ने दुस्सह क्रोध प्रकट किया। वे अपमानित होनेपर भी रोष से भरकर सब लोगों की ओर कूर दृष्टि से देखती और दक्ष को जलाती हुई-सी बोलीं। 

सतीने कहा- प्रजापते! आपने परम मंगलकारी भगवान् शिव को इस यज्ञ में क्यों नहीं बुलाया? जिनके द्वारा यह सम्पूर्ण चराचर जगत् पवित्र होता है जो स्वयं ही यज्ञ, यज्ञवेत्ताओं में श्रेष्ठ, यज्ञ के अंग, यज्ञ की दक्षिणा और यज्ञकर्ता यजमान हैं उन भगवान् शिव के बिना यज्ञ की सिद्धि कैसे हो सकती है? अहो! जिनके स्मरण करनेमात्र से सब कुछ पवित्र हो जाता है उन्हीं के बिना किया हुआ यह सारा यज्ञ अपवित्र हो जायगा। द्रव्य, मन्त्र आदि, हव्य और कव्य-ये सब जिनके स्वरूप हैं उन्हीं भगवान् शिव के बिना इस यज्ञ का आरम्भ कैसे किया गया? क्या आपने भगवान् शिव को सामान्य देवता समझकर उनका अनादर किया है? आज आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है। इसलिये आप पिता होकर भी मुझे अधम जँच रहे हैं। अरे! ये विष्णु और ब्रह्मा आदि देवता तथा मुनि अपने प्रभु भगवान् शिव के आये बिना इस यज्ञमें कैसे चले आये?

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