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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 सती! वह भक्ति दो प्रकार की है- सगुणा और निर्गुणा। जो वैधी (शास्त्रविधिसे प्रेरित ) और स्वाभाविकी ( हृदयके सहज अनुरागसे प्रेरित ) भक्ति होती है? वह श्रेष्ठ है तथा इससे भिन्न जो कामनामूलक भक्ति होती है वह निम्नकोटिकी मानी गयी है। पूर्वोक्त सगुणा और निर्गुणा- ये दोनों प्रकारकी भक्तियाँ नैष्ठिकी और अनैष्ठिकी के भेदसे दो भेदवाली हो जाती हैं। नैष्ठिकी भक्ति छ: प्रकारकी जाननी चाहिये और अनैष्ठिकी एक ही प्रकारकी कही गयी है। विद्वान् पुरुष विहिता और अविहिता आदि भेद से उसे अनेक प्रकार की मानते हैं। इन द्विविध भक्तियों के बहुत-से भेद-प्रभेद होने के कारण इनके तत्त्व का अन्यत्र वर्णन किया गया है। प्रिये! मुनियोंने सगुणा और निर्गुणा दोनों भक्तियोके नौ अंग बताये हैं। दक्षनन्दिनि। मैं उन नवों अंगोंका वर्णन करता हूँ, तुम प्रेमसे सुनो। देवि! श्रवण, कीर्तन, स्मरण, सेवन, दास्य, अर्चन, सदा मेरा चन्दन, सख्य और आत्मसमर्पण-ये विद्वानोंने भक्तिके नौ अंग माने हैं।

श्रवणं कीर्तनं चैव स्मरणं सेवनं तथा।
दास्यं तथार्चनं देवि वन्दनं मम सर्वदा।।
सख्यमात्मार्पण चेति नवाङ्गानि विदुर्बुधा:।

(शि०  पु० रुम् सं० स० खंp २३। २२ )

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