लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा

परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969
आईएसबीएन :81-85341-13-3

Like this Hindi book 0

रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


(2)
सुनिये क्रोपाटकिन – गोरकी !
भारत में फैली है आज़ादी बड़े जोर की।
सुनता न कोई फ़रियाद है।
देखिये जिसे ही, वही ज़ोर से आज़ाद है।
लोग हैं आज़ाद चिल्लाने को।
नेता हैं आज़ाद जहाँ चाहे, वहाँ जाने को।
अफ़सर परम स्वतंत्र हैं।
मन्त्रीजी हज़ार पढ़ें, लगते न मन्त्र हैं।
साहब तो खुद परीशान हैं।
चपरासी देते उन्हें पानी न तो पान हैं।

अजब हमारा यह तन्त्र है।
नक़ली दवाइयों का व्यापारी स्वतंत्र है।
पुलिस करे जो कुछ, पाप है।
चोर का जो चाचा है, पुलिस का भी बाप है।
अखबार मुक्त हैं चुपाने को,
विज्ञापनदाताओं का मरम छुपाने को।

और छात्र बड़े पुरजोर हैं,
कालिजों में सीखने को आये तोड़-फोड़ हैं।
कहते हैं, पाप है समाज में,
धिक् हम पे ! जो कभी पढ़ें इस राज में।
अभी पढ़ने का क्या सवाल है?
अभी तो हमारा धर्म एक हड़ताल है।

कोई नहीं है कैद कपाट में,
हाट में जो आया नहीं, होगा अभी बाट में।
हाथ में हो केक या कि रोटी हो,
सूट में हो लैस या कि पहने लँगोटी हो,
कवि हो कि नेता हो कि छात्र हो,
या कि ठेला हाँकता हो, करुणा का पात्र हो ;
एक बात में सभी समान हैं ;
दूसरों की बात पे न देते कभी कान हैं।

हलचल बड़ी है बाज़ार में,
कोई पाँव-पैदल, चढ़ा है कोई कार में।
लेकिन, सभी की यह टेक  है,
अब किसी में भी नहीं बुद्धि या विवेक है।
सरकार से यदि न ऊबेगा,
डूबेगा, अवश्य, यह सारा देश डूबेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book