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			 ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
एनार्की
(1)
 “अरे, अरे, दिन-दहाड़े ही जुल्म ढाता है !
 रेलवे का स्लीपर उठाये कहाँ जाता है?”
 “बड़ा बेवकूफ है, अजब तेरा हाल है ;
 तुझे क्या पड़ी है? य’ तो सरकारी माल है।”
 “नेता या प्रणेता ! तेरा ठीक तो ईमान है?
 पर, दिया जाता अब देश में न कान है।
 बने जाते कल-कारखाने आलीशान भी,
 साथ-साथ तेरे कुछ अपने मकान भी।”
 “भाई बकने दो उन्हें, तुम तो सुजान हो,
 कविता बनाते हो, हमारे अभिमान हो ।
 मान लो, कभी जो चूर-धुन थोड़ा पाते हैं,
 भारत से बाहर तो फेंक नहीं आते हैं।
 जो भी बनवाये, अपना ही व’ भवन है,
 देश में ही रहता है, देश का जो धन है। ”
 “और, अरे यार! तू तो बड़ा शेर-दिल है,
 बीच राह में ही लगा रखी महफ़िल है !
 देख, लग जायँ नहीं मोटर के झटके,
 नाचना जो हो तो नाच सड़क से हटके।”
 “सड़क से हट तू ही क्यों न चला जाता है?
 मोटर में बैठ बड़ी शान दिखलाता है !
 झाड़ देंगे, तुझमें जो तड़क-भड़क है,
 टोकने चला है, तेरे बाप की सड़क है?”
 “सिर तोड़ देंगे, नहीं राह से टलेंगे हम,
 हाँ, हाँ, जैसे चाहेंगे, वैसे नाच के चलेंगे हम।
 बीस साल पहले की शेखी तुझे याद है।
 भूल ही गया है, अब भारत आजाद है।”
 			
		  			
						
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