ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
(3)
सोच-सोच आनन मलीन है,
एक ओर पाकिस्तान, एक ओर चीन है।
समझ न पड़ता चरित्र है,
रूस-अमरीका में से कौन बड़ा मित्र है।
दोस्त ही है, देख के डरो नहीं।
कम्यूनिस्ट कहते हैं, चीन से लड़ों नहीं।
चिन्तन में सोशलिस्ट गर्क है,
कम्यूनिस्ट और काँगरेसी में क्या फ़र्क है?
जनसंघी भारतीय शुद्ध है।
इसीलिए, आज महावीर बड़े क्रुद्ध हैं।
और काँगरेसी भी तबाह है।
ठीक-ठीक जान ही न पाता, कौन राह है।
दायाँ या कि बायाँ? कौन ठीक है?
पूछता है, यार, गाँधीजी की कौन लीक है?
एक कहता है, “चलो रूस को।”
दूसरा है चीखता कि “मारो मनहूस को।
वाणी की स्वतंत्रता प्रमुख है।
चुप रहने से बड़ा और कौन दुःख है?”
“तो फिर अमरीका की बात हो?”
“लोभी, मेरे मस्तर पै भारी वज्रपात हो।
गाँधीजी की बात नहीं याद है?
आदमी को यन्त्र कर देता बरबाद है।”
“तो फिर चलायें, चलो, तकली।”
“हम गाँधीजी के भक्त होंगे नहीं नकली।
दबा नहीं अपने को पायेंगे ;
गाँधीजी के पास हरगिज नहीं जायेंगे।”
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