आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की युगांतरीय चेतना गायत्री की युगांतरीय चेतनाश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री साधना के समाज पर प्रभाव
Gayatri Ki Yugantariya Chetna - a Hindi book by Sriram Sharma Acharya
नवयुग के अवतरण की इस प्रभातवेला में क्रान्तिकारी परिवर्तन के सरंजाम खड़े करने के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता है उसे गायत्री के तत्वदर्शन, विधि-विधान और प्रयोग-उपचार द्वारा पाया जा सकता है। यह तध्य जनमानस में पूरी तरह प्रतिष्ठापित कराया जाना चाहिए, स्थिति ऐसी उत्पन्न की जानी चाहिए कि केवल तथ्यों को स्वीकारा ही न जाये वरन् अपना सर्वोत्तम-सर्वतोमुखी हित साधन भी इस अवलम्बन को अपनाने में समझा जाय। इस स्थिति को उत्पन्न करना प्रस्तुत गायत्री अभियान का सामाजिक उद्देश्य है उसे अपनाने से संकट टल सकेगा और उज्ज्वल भविष्य का आधार खड़ा हो सकेगा।
युग परिवर्तन में चरित्र निष्ठा और समाज निष्ठा को उत्कृष्ट आदर्शवादिता की लोक-परम्परा, जन-मान्यता और सर्वजनीन रुचि-आकांक्षा का रूप देना होगा। इसके लिए एक सर्वतोमुखी संविधान की, आचार-शास्त्र की आवश्यकता पड़ेगी। यह ऐसा होना चाहिए कि तर्क और तथ्यों को हर कसौटी पर कसने से सही सिद्ध हो सके। यह ऐसा होना चाहिए जिस पर आप्त पुरुषों के शास्त्रकारों के अनुभव, अभ्यास, प्रतिपादन की छाप हो, जिसे भूतकाल में प्रयोग-परायणों के द्वारा सही पाया गया हो-ऐसा बीजमंत्र गायत्री के रूप में अनादिकाल से उपलब्ध है। उसे संसार का सबसे सारगर्भित धर्मशास्त्र कह सकते हैं इसमें वैयक्तिक महानता और सामाजिक सद्भावना के सारे सूत्र-संकेतों का समावेश है। नये युग की वैयक्तिक और सामाजिक मर्यादाओं का निर्माण-निर्धारण करने की जब आवध्यकता पड़ेगी तब चिर प्राचीन और चिरनवीन का समन्वय तलाश किया जायेगा। अतीत की श्रद्धा और भविष्य की आशा का एकीकरण करते समय प्रखर वर्तमान की संरचना करनी होगी। यह कार्य गायत्री मंत्र के अक्षरों में सन्निहित सूत्र-संकेतों के सहारे जितनी अच्छी तरह सम्पन्न हो सकता है उतना और किसी प्रकार नहीं।
गायत्री की युगान्तरीय चेतना
अनुक्रम
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