श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
चौ.-हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए।।
पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई।।1।।
पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई।।1।।
इधर भरतजी हर्षित होकर अयोध्यापुरी आये और
उन्होंने गुरु जी को सब समाचार
सुनाया ! फिर राजमहल में खबर जनायी कि श्रीरघुनाथजी कुशलपूर्वक नगरको आ
रहे हैं।।1।।
सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाईं।।
समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए।।2।।
समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए।।2।।
खबर सुनते ही सब माताएँ उठ दौड़ीं। भरत जीने
प्रभु की कुशल कहकर सबको
समझाया। नगरवासियों ने यह समाचार पाया, तो स्त्री-पुरुष सभी हर्षित होकर
दौड़े।।2।।
दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला।।
भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलि सिंधुरगामिनि।।3।।
भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलि सिंधुरगामिनि।।3।।
[श्रीरघुनाथजी के स्वागत के लिये] दही, दूब,
गोरोचन, फल, फूल और मंगल के
मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने के थालोंमें भर-भरकर हथिनीकी-सी चालवली
सौभाग्यवती स्त्रियाँ] उन्हें लेकर] गाती हुई चलीं।।3।।
जे जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं।।
एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई।।4।।
एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई।।4।।
जो जैसे हैं (जहाँ जिस दशामें हैं)। वे वैसे
ही (वहीं उसी दशामें) उठ
दौड़ते हैं। [देर हो जाने के डर से] सबालकों और बूढ़ों को कोई साथ नहीं
लाते। एक दूसरे से पूछते हैं-भाई ! तुमने दयालु श्रीरघुनाथजीको देखा है?।।4।।
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