श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
A PHP Error was encounteredSeverity: Notice Message: Undefined index: author_hindi Filename: views/read_books.php Line Number: 21 |
निःशुल्क ई-पुस्तकें >> श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |
वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल शोभा कै खानी।।
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा।।5।।
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा।।5।।
प्रभुको आते जानकर अवधपुरी सम्पूर्ण शोभाओंकी
खान हो गयी। तीनों प्रकारकी
सुन्दर वायु बहने लगी। सरयूजी अति जलवाली हो गयीं (अर्थात् सरयूजीका जल
अत्यन्त निर्मल हो गया)।।5।।
दो.-हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत।।3क।।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत।।3क।।
गुरु वसिष्ठजी, कुटुम्बी, छोटे भाई शत्रुघ्न
तथा ब्राह्मणों के समूहके साथ
हर्षित होकर भरतजी अत्यन्त
प्रेमपूर्ण मन से कृपाधाम श्रीरामजीके सामने
(अर्थात् अगवानीके लिये) चले।।3(क)।।
बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान।।3ख।।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान।।3ख।।
बहुत-सी स्त्रियाँ अटारियों पर चढ़ी आकाशमें
विमान देख रही है और उसे
देखकर हर्षित होकर मीठे स्वर से सुन्दर मंगलगीत गा रही हैं।।3(ख)।।
राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखु हरषान।
बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान।।3ग।।
बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान।।3ग।।
श्रीरघुनाथजी पूर्णिमा के चन्द्रमा हैं, तथा
अवधपुर समुद्र है, जो उस
पूर्णचन्द्रको देखकर हर्षित हो रहा है और शोक करता हुआ बढ़ रहा है
[इधर-उधर दौड़ती हुई] स्त्रियाँ उसी तरंगोंके समान लगती है।।3(ग)।।
To give your reviews on this book, Please Login